डॉ. शिवशंकर श्रीनिवास आ डॉ. अशोक कुमार मेहताक आशीर्वाद पबैत |
अगिला दिन नागपुर स्टेशन पर गाड़ी रुकिते करीब आधा दर्जन टी. टी. सी. एक्कहि बॉगी मे चढ़ला आ एकहक यात्रिक टिकट चेक करब शुरू केलनि । राति मे भोपालक नजदीक जुर्माना भुगति चुकल दुन्नू युवा यात्री कोनो तरहे टी. टी. सी. सँ नजरि बचबैत एम्हर-ओम्हर नुकेबाक यत्न करय लगलाह । एकहक यात्रीक टिकट चेक करबाक क्रममे दुन्नू युवक टी. टी. सी. केर सोझा आबि गेलाह आ फेर सँ वएह बात, कियैक तँ भोपाल बला टी. टी. सी. तारीख मे लाल घेरा लगा चुकल रहथि तँ स्वाभाविक अछि जे ककरो नजरि सभसँ पहिने ओत्तहि जाएत । दुन्नू युवक पुनः ओएह गप्प सभ टी. टी. सी. केँ सोझा रखलनि जे पहिने राखि चुकल रहथि मुदा तकर कोनो प्रभाव नै, हुनका लोकनिक कहब रहनि जे कानूनी रूप सँ गलत छै तैं अहाँकेँ दंड भुगतय पड़त । हिनका लोकनिक अज्ञानता ई रहनि जे पहिलुक टी. टी. सी. केँ जुर्माना तँ भुगतनहि रहथि मुदा तकर कोनो पर्ची नहि रहनि जकर रहस्योद्घाटन बाद मे केलनि । ई लोकनि बेर-बेर ओहि जुर्माना केर सन्दर्भ मे कहथिन मुदा बिना कोनो प्रूफ कानून कोना मानत ?जतबा बेर गिड़गिड़ाइथ ततबा बेर जेना टीटीसी केर संख्या बढ़ल चल जा रहल छल । दुन्नू युवक सोचथि जे जखन जुर्माना भरनहि छी तँ फेर जेनरल बॉगी मे कियैक जाउ । हिनका लोकनिक सहयोग हेतु पक्षमे किछु सज्जन (गोट तीन संगी) सोझा एलाह आ टीटीसी केँ आग्रह केलनि जे “ये लोग उतने जानकार नहीं हैं जो हो गया सो हो गया अब जाने दीजिये । बेचारे जुर्माना तो भुगत ही चुका है” एतबा सुनितहि पहिल टीटीसी भड़कि गेलैक “एक काम कीजिए आप अगर इतने शुभचिंतक हैं तो इनका जुर्माना भुगत दीजिए” आकि ओकर दोसर सहकर्मी टीटीसी (महिला) चट द’ बाजलि “देखिये सरकारी कामकाज मे हस्तक्षेप नहीं कीजिए, हमें अपना काम करने दीजिए”, आकि तरातर पाँच-छह टा आर टीटीसी जूमि गेल आ ओएह गप्प दोहराबय लागल ।
ओकर जुर्माना बला प्रक्रिया समाप्त हेबाक संग एक आर नबका बहस शुरू भ’ गेल । पक्ष मे उतरल सहयात्री लोकनि टीटीसी केर झुंड केँ जाइत-जाइत एक एहेन टिप्पणी कय देलकै जाहि पर ओकरा लोकनिकेँ आपत्ति भ’ गेलैक आ अंतमे जीआरपी बलाकेँ आबिक’ थर-थाम्ह करय पड़लैक । एकरा लोकनिक कहब रहैक जे “बिहार की ट्रेन होता तो इन सबको बताता” । महिला टीटीसी केर कानमे ई गप्प गेलैक ओ अपन सहकर्मी केँ वापस बजबैत कहलकै “देखिये बिहारी भाइयों का अकड़पन, आइये इनका दिमाग ठिकाना लगाते हैं” उठलै सभटा झों-झों क’ । एतेक जोरगर हल्ला भेलैक जे टीटीसी संग चढ़ल जीआरपी एम्हर-ओम्हर सँ आबि एकत्रित भ’ गेलैक । पुलिस बला सभ यात्री केँ सेहो बुझा देलकै आ टीटीसी सभकेँ सेहो बुझा-सुझा क’ झगड़ा सुलह करैत ट्रेन खुजबाक बेर भ’ गेल रहैक, पूरा टीम उतरि गेल ।
कनेक कालक बाद आब ई लोकनि दुन्नू युवककेँ पुछलथिन “जब टीटीसी ने पिछले स्टेशन पर जुर्माना लिया होगा तो पर्ची दिया न होगा जी !” एक युवक बाजल “जी सर दिया था मगर किसी को दिखाने के लिए नहीं बोला था” ओहिमे सँ एक यात्री साकांक्ष होइत बाजल “क्यों भाई,ऐसा क्यों ?” युवकक जवाब छल “पैसा कम था इसलिए उसने फाइन लेकर जेनरल बॉगी का टिकट बना दिया और बोला इसी मे बैठे रहो, जब अगला स्टेशन आएगा तो जेनरल बॉगी मे चले जाना” एकटा संगी उतंगिक’ बाजल “रे बेवकूफ़ तुमको ये बात बताना चाहिए था न, हमलोग तो बेकार मे बहस किये ना उसके साथ । गदहा कहीं का ! बार-बार जितना जुर्माना दिया उससे कम मे तो तुम एकबार जुर्माना देकर इसी मे बैठ के चला जाता” आ बेचारा सभकेँ आब अपने पर अफ़सोस भ’ रहल छलैक ।
सहयात्री लोकनिक घनगर आ सोंटल मोंछ देखि पहिल नजरि मे भेल छल जे ई सभ दक्षिण भारतीय (हैदराबाद दिसक स्थायी निवासी) ने होथि मुदा ऐ विवादक बाद आश्वस्त भेलौं जे ई बन्धु लोकनि बिहारी मूलक छथि । अपन मोन कहय जे कहीं ई लोकनि भागलपुर वा बेगूसराय रहनिहार (मोंछक अनुरूप) मैथिल ने होथि । कारण अपनाकेँ असगरुआ आभास भ’ रहल छल तैं हिनका लोकनिक लगीच जाय अपन स्वभावक अनुसार जिज्ञासावश पुछलियनि “अपने लोकनिक घर कतय भेल ?” ओ लोकनि हमर मूँह तकैत कहलनि “आपको कोई ग़लतफ़हमी हो रहा है, हम लोग छी-छा बाले नहीं हैं” । आहिरे बा ई छी-छा सुनिक’ बड़ा अजीब लागल तथापि भाषा सुधार करैत दोहरा क’ हिन्दी मे पुछलियनि “बिहार में कहाँ के रहने वाले हैं आपलोग ?” जवाब आश्चर्यचकित केलक “हममें से बिहार का तो कोई नहीं है, हमलोग तो गोरखपुर के रहनेवाले हैं” पुछलियनि “मगर आपका बहस तो टीटीसी के साथ बिहारी बाले मुद्दा पर हो रहा था” छुटितहि ओकर तेसर संगी बाजल “तो उससे आपको क्या प्रॉब्लेम है ?” प्रत्युत्तर सूनि बड़ा अजीब लागल आ सोचय लगलौं जे देखियौ लोक कोन तरहे अवसर भेटला पर बदनामीक स्थान पर बिहारवासीक नामक प्रयोग करैत अछि । एहिना मे अवधारणा बदलैत छैक । हिनका लोकनिक मानसिकता देखि एहि मुद्दा पर बेसी बहस करब उपयुक्त नहि बूझि पड़ल आ अपन आरक्षित (उप्पर बला) बर्थ पर जा यात्राक सभसँ प्रिय संगी पोथी (एहि बेर संग मे छल पं.गोविन्द झाक लिखल मैथिली साहित्य विमर्श)क अध्ययन मे लागि गेलौं ।
यात्राक क्रममे गाड़ीक साफ-सफाइ देखि एकटा विलक्षण अनुभव भेल जे एम्हरका यात्री लोकनि सेहो एकटा जिम्मेवार यात्रीक रूपमे अपन भूमिकाक निर्वहन करै छथि । कम्पार्ट सँ ल’ क’ शौचालय धरिक साफ़-सफाइ आ रखरखाव हेतु कर्मचारी सेहो जिम्मेवार छथि, जे अपना दिसका ट्रेन मे यात्री सँ ल’ क’ रेलवे कर्मचारि तककें लापरवाही देखल जा सकैछ. एकर विपरीत ई कहबा मे कनिको संकोच नै अछि जे बिहार क्षेत्रक लोक रोजगार हेतु रोज लाखो कें संख्या मे विभिन्न प्रान्त दिस पलायन करैत अछि जकर सभसँ पैघ माध्यम अछि भारतीय रेल. भारतीय रेलक दूनेती व्यवहार तखन देखबा मे अबैछ जखन रेल परिचालनक सभसँ खराब व्यवस्था बिहार दिसका ट्रेन मे होइछ । नै त’ समय पालन, नै त’ सुरक्षा, नै त’ कोनो उचित व्यवस्था आ ने कोनो परिचालन हेतु नियमितता । भ्रष्टता एतेक जे जागरूक यात्री कें एकटा चाहक उचित दाम लेल सेहो पेंट्री स्टाफ संग बक्तुति करय पड़ैत छनि । रेल नीर (आइआरसीटीसी सँ अधिकृत) केर अनुपलब्धताक कारण दैत लोकल आ घटिया ब्रांड सभक पानिक बोतल ऊन सँ दून दाम पर बेचब जेकि लोकक बाध्यता रहैछ आ स्वास्थ्य लेल सेहो हानिकारक । जागरूक छी तँ बहस करू, समय खराब करू अन्यथा सामान्य लोक संग लूटक एक माध्यम बनल अछि एना मे रेलवे पदाधिकारी आ ठिकेदार सभ पर सन्देह स्वाभाविक । अहाँक कम्पार्ट मे लाइट, पंखा, मोबाइल चार्जिंग पॉइंट काज करिते हएत तकर कोनो गारंटी नै । चारि महिना पूर्व आरक्षित टिकट आ आमजनक इन्वेस्टमेंट सँ सरकार चाहे जतबा राजस्व अरजि लिअए मुदा आरक्षित सीटक यात्री अपना सीट पर चैन सँ सूतब तँ दूर पलथा मारि बैसियो सकता की नै तकर कोनो गारंटी नै । चारि मास पूर्व अग्रिम टाका असूलनिहार सरकारी मंत्रालय कें यात्रीक एहि सभ समस्या सँ कोनो सरोकार नै । टी.टी.सी. एवं जी.आर.पी. केर बर्ताव सेहो संतोषजनक नै कहक चाही । एहि सभ खराब अनुभवक संग यात्रा करैत रहनिहार कोनो व्यक्तिकें जँ एतेक सुविधा भेटतै तँ निःसंदेह हमरा सहित कोनो यात्री लेल नीक अनुभव हेतैक ।
विगत १७ वर्षक दिल्ली प्रवासक क्रममे ई हमरा वास्ते पहिल अवसर छल जे दिल्ली-बिहार-दिल्ली सँ इतर भारतक कोनो आन शहर दिस यात्रा केने रही । साहित्यिक मित्र गुँजन श्री, विकाश वत्सनाभ एवं अग्रज दम्पत्ति मनोज शाण्डिल्य-शारदा झा जीक आग्रह विशेष पर देसिल बयना, हैदराबाद केर दसम वार्षिकोत्सवक अवसर पर २५ नवम्बर,२०१८क' आयोजित विशुद्ध साहित्यिक कार्यक्रम (विद्यापति स्मृति गोष्ठी)मे सहभागिता सुनिश्चित करबा लेल दफ्तर सँ जेना-तेना छुट्टीक सामंजस बैसबैत दिल्ली सँ हैदराबाद जेबा लेल तैयारी कएल । दू-दिवसीय एहि यात्रामे विश्रामक ठीया पूर्व-निर्धारित छल श्री मनोज शाण्डिल्यक आवास । सिकन्दराबाद रेलवे स्टेशन सँ मल्लमपेट, वाचुपल्ली, हैदराबादक पैराडाइज़ अपार्टमेंट्स मे प्रातः पाँच बजे पहुँच गेल रही जतय मित्र गुँजन श्री रतिजग्गी क' मिनट-मिनट केर खबरि लैत हमर स्वागतार्थ प्रतीक्षा क' रहल छलाह । आवासक सोझा कैब रुकिते एक गोट कुकुर भुकबाक स्वर कान मे पड़ल जकर स्वर मे सिंह सदृश पराक्रमी तेवर केँ सहजहि अकानल जा सकैत छल । पैर थकमका गेल आ ओकर भूकब सँ कंठक सेप जेना सुखा गेल छल मुदा ताबतहि मे गुँजन श्री ओंघाइते बजलाह "सैंडी, सैंडी, शान्त भ'जो यार !" ओ आदेश मानि पुनः शान्त भ' गेल । घर सँ बहराय लोहा बला गेटक कुंडी उठबैत बजलाह "आउ भाइ ई अगबे भुकिते टा छैक, कटैत नै छैक", आश्वासन पाबि अटैची सहित घरक भीतर प्रवेश कएल । एक कोन मे बान्हल सैंडी दिस डराइते ताकी मुदा ओकरो आब आभास भ’ गेल रहैक आ मौन स्वीकृति द’ चुकल छल ।
दिल्लीमे प्रायः कुहेस आ जाड़ लागब प्रारम्भ भ’ गेल छल तैं कम्बल आ जैकेट संगे ल’ गेल रही मुदा तकर उपयोगिता भोपाल टपला उत्तर समाप्त सन भ’ गेल छल । हैदराबाद पहुँचला उत्तर पंखा चलैत देखि एकरत्ती आश्चर्य भेल मुदा ओतुक्का मौसम देखि एकर प्रयोजन आवश्यक छल ।
एक सोफा पर बैसल दुनू मित्र हालचाल मे व्यस्त रही ताबति ध्यान गेल दोसर सोफा जेकि पंखाक ठीक सामने छल आ ताहि पर निसभेर अवस्था मे सूतल एक गोट अपरिचित युवक पर, पुछला उत्तर ज्ञात भेल जे ई प्रवीण झा थिकाह पेशा सँ शिक्षक आ मिजाज सँ कवि छथि । महाराष्ट्रक लातूड़ मे रहै छथि आ अही आयोजन विशेष हेतु आमंत्रित छथि । हमरा दुनू गोटेकेँ सूतब सँ बेसी किछु गपसप क’ एक-दू घंटा आर खेपब उपयुक्त बूझि पड़ल कारण दस बजे हमरा लोकनिकेँ आयोजन स्थल हेतु प्रस्थान करबाक छल । हमरा लोकनि गपसप करिते रही ताही मध्य श्रीमती शारदा झा (भौजी) उपरका फ्लोर सँ निच्चा एलीह, तकरा किछुए कालक बाद श्री मनोज शाण्डिल्य (भैया) सेहो निच्चा एलाह । ता प्रवीण जी सेहो उठि गेल रहथि हुनको सँ परिचय करौलनि । किछुए कालक बाद श्री अशोक कुमार मेहता (सर) सेहो निच्चा एलाह आ तकरा किछुए कालक बाद एकटा कोठली सँ मनोज भैयाक माँ (चाची) सेहो बहरेली, पाँछा सँ हुनका भेलन्हि जे हम विकाश वत्सनाभ छी जखन सोझा एली तँ गुँजन हुनका हमर परिचय देलखिन । प्रणाम-पाती आ हालचाल भेलै । ओमहर सेंडी केँ बंधन मुक्त क’ देल गेलैक आ हमरा हाथ मे गोट दस टा बिस्कुट आ एकटा गेंद धरा देल गेल जे एक-एक टाक’ बिस्कुट दैत रहबै आ जखन समाप्त भ’ जाए तँ गेंद सँ खेलाएब ओकरा ई विश्वास भ’ जेतैक जे हम कियो अन्ठिया नै छी । कुकुर सँ भय हमरा नान्हिए टा सँ होइत रहल अछि कारण दू-तीन बेर हबकनौ अछि आ तकर झाड़-फूक सेहो भेल अछि । घरक सदस्यक निर्देशानुसार हाथ मे बिस्कुट आ गेंद ल’ करेज सक्कत करैत ओएह काज केलौं जाहि सँ हमरो सोरहन्नी भय समाप्त भ’ गेल । एम्हर भौजी चाह बना अनलीह, हमरा लोकनि सभ गोटे चाह पिबिते रही कि देखै छी सेंडी एकटा कोठली दिस भागल आ कोठली सँ बाहर दिस अबैत एक वृद्धकेँ लगीच जाक’ देह पर छड़पैत किछु संकेत करैत छल । ओ वृद्ध कियो आर नहि मैथिली रंगमंचक स्थापित नाम स्वनामधन्य आदरणीय श्री दयानाथ झा आ मनोज शाण्डिल्यक पिता । लग जा गोड़ लगलियनि, मनोज भैया परिचय करेबाक लेल किछु बजितथि ताहि सँ पहिनहि मूँह निहारैत बजलाह “मनीष झा बौआभाइ !” कनेक काल धरि तँ स्तब्ध भ’ गेल रही जे एहेन-एहेन व्यक्तिक सोझा हमर एखन कोन परिचय ? मुदा फेर तुरंत बुझबा मे आबि गेल जे ई परिचय फेसबुकक देन थिक । चाह पीला उपरान्त किछु गपसपक बाद सभ गोटे समय सँ स्नान कएल, इडली आ साम्भर जलखइ भेलइ तदुपरान्त हमरा लोकनि विदा भेलौं आयोजन स्थल दिस ।
श्री अशोक मेहता, गुँजन श्री, प्रवीण झा, हम आ मनोज भैयाक कार सँ आ दोसर कैब सँ मनोज भैयाक माँ-बाबूजी आ श्रीमती शारदा झा कार्यक्रम स्थल पर पहुँचलहुँ । आयोजन हेतु पूर्व-निर्धारित स्थान छल हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय केर स्कूल ऑफ ह्यूमैनिटीज सभागार । हैदराबाद गेल छी आ युवा कवि विकास वत्सनाभ जँ तुरन्त नहि भेटथि तँ जतबा बिलम्ब हो ततबा जिज्ञासा बनब स्वाभाविक । अपनामे गप्प करिते रही ता देखै छी विकास जी सेहो मोटरसाइकिल संग उपस्थित छथि । ई जतबे काव्य कर्म मे जिम्मेदारीक संग हमरा लोकनिक सोझा उपस्थित होइत रहैत छथि ततबे अपन नौकरीक प्रति जिम्मेदार सेहो छथि आ किछु मास सँ ऑफिसक काज सँ मेरठ (यूपी) मे रहथि, मुदा देसिल बयना कार्यक्रम विशेष हेतु ससमय हैदराबाद पहुँच गेलाह ।
देसिल बयनाक दसम वार्षिकोत्सव छल । श्री दयानाथ झा जी द्वारा स्थापित एहि संस्थाक वर्तमान अध्यक्ष छथि आदरणीय श्री चन्द्रमोहन कर्ण । एहि आयोजन हेतु बाहर सँ आमंत्रित अतिथि मे श्री अशोक मेहता जेकि हमरा सभक संग रुकल रहथि आ दोसर अतिथि प्रसिद्ध कथाकार श्री शिवशंकर श्रीनिवास जी रहथि जे पत्नी सहित आदरणीय अध्यक्ष जी ओहिठाम रूकल रहथि से सभ सेहो समय सँ आबि गेलाह । अध्यक्ष जी समेत सभ सदस्य लोकनि मंच व्यवस्था मे लागि गेलाह । मंच व्यवस्थित हेबामे करीब घंटा भरि आर समय लगबाक अंदाज छल । एही बीच गुँजन श्रीक एक खुरापात करैत दृश्य सोझा अभरि गेल, ओ मनोज भैयाक कानमे किछु कहलखिन आ फेर हमरा मनोज भैया बजबैत छथि से कहि हुनका लग पठा देलन्हि । गीत गायनमे अपनाकेँ असमर्थ बुझैत इच्छा नहियो रहैत मनोज भैयाक आदेशक पालन करैत एक-दू टा गीत गेबा लेल तैयार भेलौं । हारमोनियम आ ढ़ोलकक व्यवस्था सेहो छल । हारमोनियम पर जयचन्द्र जी आ ढ़ोलक पर प्रवीण जी संग देलनि । हमरो वास्ते अवसर नीक छल । पहिल गीतक रूपमे अपन बाबूजी डॉ. नारायण जी झा रचित संस्कृत मे सरस्वती वंदना ‘माँ सुखशायिनि स्वर्ग निवासिनि’ आ दोसर बहुत दिन पहिने सँ सुनैत आबि रहल एक लोकगीत ‘हरियर सुगनमा केँ लाले-लाल ठोर रे’ गाबि ओहि आदेशक पालन कएल । एम्हर मंच सजि क’ सेहो तैयार छल ।
हैदराबाद क्षेत्रक पसार विस्तृत अछि जाहिमे पचास-पचास किलोमीटर दूर सँ सुधी श्रोतागण सपरिवार पहुँचल रहथि आ से संख्या करीब डेढ़ सए (लगभग) छल हएत । मनोरंजनक तुलना मे साहित्यक प्रति जन उपस्थितिक जे बिडम्बना अछि प्रायः सभ ठाम देखल जाइत अछि से एत्तहु देखना गेल तथापि साहित्यक मूल मर्म केँ बुझनिहार उपस्थित साहित्य प्रेमीक अनुराग अंत धरि समान उत्साहक संग बनल रहल । कार्यक्रम दू सत्र मे विभाजित छल जाहिमे पहिल सत्र महाकवि विद्यापतिक दर्शन ओ कृतित्व पर चर्चा आ दोसर सत्र कवि गोष्ठी केर । गुँजन श्रीक विभिन्न प्रतिभा सँ परिचय बेर-अबेर होइत रहल अछि मुदा हिनक मंच संचालन दक्षता सँ वंचित रही । भेष, भाषा, विचार, अनुशासन, परिष्कृत शब्द, सम्प्रेषण, समय पालन आ वाक्पटुताक समावेश करैत जे हिनक संचालकीय पक्ष छल से हमरा सहित उपस्थित सभ गोटेकेँ बेस प्रभावित केलक । अचंभित भेल रही तखन आर बेसी जखन ओतुक्का स्थानीय निवासी आ ऑल इंडिया रेडियो, हैदराबाद सँ सेवानिवृत अधिकारी डॉ. पी. नागपद्मिनी द्वारा महाकवि विद्यापति रचित गोसाओंनिक गीत ‘जय-जय भैरवि’केँ शास्त्रीय धुन मे सस्वर प्रस्तुत कएल गेल । विद्यापतिक चित्र पर माल्यार्पण, दीप प्रज्ज्वलन, अतिथि सम्मान, देसिल बयनाक स्मारिका विमोचन आ तकरा बाद प्रारम्भ भेल विद्यापति स्मृति गोष्ठीक पहिल सत्रक मूल विषय विद्यापतिक दर्शन ओ कृतित्व पर परिचर्चा । अतिथि सम्मान वास्ते एखन अपनाकेँ ओहि रूपे तैयार नहि बुझै छी तथापि देसिल बयनाक मंच सँ सम्मानित भ’ गर्वानुभूति जरूर होइत रहल । एहि सम्मान विशेष वास्ते मित्र गुँजन श्री, विकास वत्सनाभ, मनोज शाण्डिल्य, शारदा झा सहित देसिल बयनाक सभ सदस्यक प्रति आभारी रहबनि ।
वक्ताक रूपमे देसिल बयनाक संस्थापक श्री दयानाथ झा, मुख्य अतिथि प्रो. शिवशंकर श्रीनिवास, विशिष्ट अतिथि प्रो. अशोक कुमार मेहता, श्री बुद्धिनाथ झा एवं डॉ. पी. नागपद्मिनी । एहि ठाम डॉ. पी. नागपद्मिनीक अतिथि बनाओल जेबाक सम्बन्ध मे मैलोरंग,दिल्लीक निदेशक डॉ. प्रकाश झाक एकटा मंतव्य प्रासंगिक लगैछ जे हमरा लोकनि जखन कोनो कार्यक्रम करै छी मैथिलक संग-संग गैर-मैथिल केँ सेहो अपन कार्यक्रमक हिस्सा बनाबी जाहि सँ ओहो हमरा संस्कृतिक सम्बन्ध मे बूझथि आ हमरा लोकनिक विस्तृत उद्देश्यमे सहायक होथि । संस्थाक अध्यक्ष श्री चन्द्रमोहन कर्ण जीक संबोधन मे सदस्यक लोकनिक संग एक पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित हेबाक संग मिथिला सांस्कृतिक परिषद, हैदराबादक अध्यक्ष श्री संजोग ठाकुर द्वारा कएल गेल सहयोगक सन्दर्भ मे जाहि उदारताक संग विस्तृत जानकारी देल गेल से निश्चित रूप सँ अन्यत्र संचालित संस्थाक सदस्य लोकनि हेतु अनुकरणीय भ’ सकैछ ।
वक्ता लोकनिक वक्तव्य सँ प्रायः ओ सभ बात सोझा अबैत गेल जे विद्यापतिक कृतित्व सँ साहित्य आ समाज कोन रूपे उपकृत भेल अछि । श्री दयानाथ झा अपन संबोधनक माध्यम सँ जनौलनि जे विद्यापति अपन रचना मे कोन तरहे शोषित समाजक पीड़ाकेँ प्रमुखता सँ रखलनि । श्रीमती पी. नागपद्मिनी विद्यापतिक पदावलीक माध्यम सँ समाजमे देल हुनक योगदानक विस्तृत चर्च केलीह । चर्चित गीतकार प्रो. अशोक कुमार मेहता विद्यापतिक रचना वैशिष्ट्यता पर सविस्तृत विचार रखलनि । प्रसिद्ध कथाकार प्रो. शिवशंकर श्रीनिवास विद्यापति सँ प्रभावित आ प्रेरित काव्य सर्जक लोकनिक विस्तृत जानकारी देलनि जाहि सँ भारतीय साहित्य संपदा कोना संवर्धित होइत गेल । एहि तरहे ई सत्र अपन मूल उद्देश्यपूर्ति मे सफल रहल । उक्त सत्रक एक प्रखर वक्ता आदरणीय श्री बुद्धिनाथ झा जीकेँ भारतीय रेलक कुव्यवस्थित परिचालन कारणे एबामे बिलम्ब मात्र नै अति-बिलम्ब भेलनि आ तकर नोकसान हमरा सन युवा तूरकेँ प्रत्यक्षतः भेल ।
दिल्लीमे भने विगत १७ बर्ख सँ रहैत होइ आ सालो भरि विद्यापति स्मृति पर्व समारोहमे भीड़क एक हिस्सा बनैत होइ मुदा पहिल बेर ई बुझबामे आएल जे विद्यापतिक नाम पर होइत आबि रहल समारोह आ गोष्ठी शब्द मे कतेक अंतर अछि । खासक’ एहि कार्यक्रमक बाद तँ सभटा दृष्टि जेना आर बेसी फरिच्छ भ’ गेल । एखन धरि जतबा देखल अछि विद्यापति समारोह मे मनोरंजन आ राजनैतिक छवि मात्रक स्थान छैक जखनकि गोष्ठी मे महाकवि विद्यापतिक कृतित्व केँ जीवन्त रखैत पीढ़ी-दर-पीढ़ी ओकरा आगाँ बढ़ेबाक एक सफल चेष्टा, कृतज्ञता आ दृढ़संकल्पता दृष्टिगोचर होइत रहल । इएह सभ कारण सँ देसिल बयनाक आयोजन हमरा विशेष प्रभावित केलक । एहि सत्रक बाद भोजनावकाश छल । साधारणतया मंचस्थ अतिथि लोकनिक परिचय दर्शक दीर्घा मे बैसल लोक सभकेँ भ’ जाइत छनि मुदा दर्शक लोकनि सँ परिचयक एकटा उत्तम माध्यम अछि भोजनावकाश । भोजनक क्रममे एक सँ एक मूर्धन्य लोकनि सभसँ परिचय-पात भेल जाहिमे नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसिक वैज्ञानिक एवं संस्थाक उपाध्यक्ष डॉ. चन्द्रशेखर झा, प्रसिद्ध लेखिका अहिल्या मिश्र आदिक संग भेल परिचय सेहो एक उपलब्धिमूलक रहल । सभागारक बाहर मैथिली पोथिक स्टॉल सेहो लागल छल जाहिमे बहुतो उपयोगी पोथी सभ उपलब्ध छल ।
दोसर सत्र कवि गोष्ठीक प्रारंभ भेल आ एहि सत्रक संचालन श्री अशोक मेहता एवं अध्यक्षता श्री शिवशंकर श्रीनिवास जीकेँ देल गेल कारण कवि गोष्ठी सत्रक अध्यक्षता श्री बुद्धिनाथ झाकेँ करबाक छलनि मुदा हुनक ट्रेन एखनहुँ सिकंदराबाद स्टेशन सँ दूर छल । कविक संख्या करीब दर्जन सँ बेसी छल तैं प्रत्येक कविकेँ दू गोट कविता वाचनक अनुमति छल जाहिमे मुख्य रूप सँ अशोक कुमार मेहता, मनोज शाण्डिल्य, शारदा झा, विकास वत्सनाभ, गुँजन श्री, प्रवीण झा, रंजन झा, चन्द्रमोहन कर्ण, शम्भुनाथ झा, अमर कुमार झा आ हमरा सहित अन्य कवि लोकनिकेँ प्रस्तुतिक अवसर भेटलनि । एखन डिजिटल युग मे प्रत्येक हाथ मे एकटा स्मार्टफोन आ अपन-अपन आवश्यकतानुसार लोक एहिमे डाटा संचित क' रखैछ आ इएह एकटा लोकक कमजोरी सेहो थिक जे स्मरणशक्ति दिनानुदिन क्षीण भेल जा रहल अछि आ अपन एकटा छोटो सन कविता मोन राखब मोसकिल । किछु लोक अपवाद होइत छथि आ एहने सन एक अपवादक रूपमे मोन पड़ै छथि श्री संजोग ठाकुर जे स्वरचित एक गोट दीर्घ कथाक पाठ अपन स्मृतिक आधार पर केलनि । हुनक प्रस्तुतिक शैली कथाकेँ आर बेसी रोचक बनबैत छल ।
विभिन्न साहित्यिक कार्यक्रम मे उपस्थिति आ सोशल नेटवर्कक विमर्श प्रसंग केँ देखैत नव रचना प्रस्तुत करबा सँ पूर्व गंभीरतापूर्वक ओहि पर चिन्तन करैत छी जे सोशल नेटवर्क पर सक्रियता सँ पूर्व एना भ' क' नै भ' पबैत छल । कार्यक्रमक प्रासंगिकता केँ देखैत संग मे दू-तीन गोट कविता ल' गेल रही जाहिमे 'चारि दीवारी', 'धात्रीक गाछ', 'हेतै कहियो भोर' आदिक पाठ केला बाद मंच सँ नीचा उतरैत डॉ. अहिल्या मिश्र जी अपन ई-मेल आईडी दैत ‘धात्रीक गाछ’ नामक कविता पठेबाक आग्रह केलनि आ आश्वस्त केलनि जे एकर हिन्दी अनुवाद कोनो स्तरीय पत्रिका मे छपाएब । करीब आधा दर्जन कवि लोकनिक काव्य पाठक बाद युवा कवि अमर कुमार झा जेकि स्टेशन गेल रहथि हुनका संग आदरणीय श्री बुद्धिनाथ झा आयोजन स्थल पर पहुँचला आ आयोजन मे सहभागी भेला । विभिन्न विधा पर हस्तक्षेप रखनिहार आदरणीय सँ बहुत विषय पर बहुत रास तथ्यात्मक रचना सूनल जा सकैत छल मुदा समय समापन दिस संकेत क’ रहल छल । कविक संख्या बाहुल्यताक कारणे विभिन्न विषय पर एक सँ एक कविता सभ सुनल गेल आ तकरा बाद सत्रक अध्यक्ष श्री शिवशंकर श्रीनिवास जी द्वारा पठित कविता सभ पर महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया एवं सुझाव राखल गेल । दू-दिवसीय एहि आयोजनक पहिल दिनक दुनू सत्रक समापन भेल आ किछु औपचारिक भेंट-घाँटक संग दर्शक एवं अतिथि लोकनि अपन-अपन आवास दिस प्रस्थान केलनि ।
सभागार सँ बाहर भ’ हमरा लोकनि सेहो सवारी व्यवस्थित करबामे लागि गेल रही । मनोज शाण्डिल्यक पिता आदरणीय दयानाथ झा स्वास्थ्यजन्य कारणे कतौ जेबा-एबामे असमर्थ रहैत छथि तैं मनोज भैया माँ, बाबूजी आ दादा (श्री बुद्धिनाथ झा) केँ जेबाक व्यवस्था क’ घर पठा देलथिन । हमरा लोकनिक विचार भेल जे आजुक डिनर (रात्रि भोजन) हैदराबादक प्रसिद्ध रेस्टोरेंट्स पैराडाइज मे चलि क’ कएल जाए । मनोज भैयाक संग कार सँ शारदा झा, अशोक मेहता सर, प्रवीण जी गंतव्य स्थान पर पहुँचलाह आ एम्हर विकास वत्सनाभ आ गुँजन श्री एक मोटरसाइकिल सँ आ दोसर मोटरसाइकिल सँ हम आ अमर जी पूर्व-निर्धारित स्थान पर पहुँचल । अमर कुमार झा मूलतः कैथिनियाँ निवासी छथि विगत तीन-चारि बर्ख सँ हैदराबाद प्रवास मे छथि । ई एकटा अनुजक रूपमे विलक्षण व्यक्ति भेट गेलाह । मस्तमौला मिजाज, दुनियाँक सभ चिन्ता सँ मुक्त । साहित्य लेखन मे सेहो रुचि देखि ई कहल जा सकैछ जे ओतुक्का परिवेश आ संसर्गक असरि नीक जेंका पड़ल छनि । कोनो निजी बैंक मे कार्यरत छथि आ ओतुक्का प्रांतीय भाषा तेलुगू सेहो धुड़झाड़ बजै छथि । गाड़ी चलेबा मे आत्मविश्वास देखबा जोगर । कखनो काल तँ हिनक मोटरसाइकिलक तेज गति देखि लागय जे चलबै कम छथि आ उड़बै बेसी छथि । डरक मारे जा कंठक सेप सुखाएत-सुखाएत ता कोनो पानक दोकान पर चट सँ ब्रेक लगा देथिन । साधारणतया पान बहुत बेसी नै खाइ छी । कोनो अवसर विशेष पर एक-दू खिल्ली खेलौं सएह । एहि यात्रामे हैदराबादक पान धरि खूब खेबाक अवसर भेटल, कारण ई तीनू पान खाइ मे मास्टर । एहि तरहें रूकैत-बढैत पहुँचलौं रेस्टोरेंट्स । ओना तँ हैदराबादी बिरयानी समूचा भारत मे प्रसिद्ध अछि मुदा पैराडाइज रेस्टोरेंट्सक बिरयानी स्थानीय लोकक पहिल पसीन अछि । रवि दिनक छुट्टी मे लोक सपरिवार एहि ठाम अबैत अछि आ तैं भीड़ सेहो देखल गेल । हमरा लोकनि सेहो करीब आधा घंटा प्रतीक्षा कएल आ अही बीच बाहर वेटिंगक क्रममे स्मृति जोगा रखबाक उद्देश्य सँ किछु फोटोग्राफिक आनन्द लेल । हमरा लोकनि आठ गोटे रही जाहि मे अशोक सर, प्रवीण जी, अमर जी आ गुँजन जी पूर्ण शाकाहारी आ शेष हमरा लोकनि चारू गोटे मांसाहारी । वास्तव मे बिरयानीक ई स्वाद नहिए जेंका कतौ अभरल अछि । भोजनोपरान्त फेर ओही क्रमे घर पहुँचलौं ।
किछु कालक गपसपक पश्चात रातिक तीन बाजि चुकल छल । दू-चारि घंटा फेर रात्रि विश्राम कएल आ पुनः सात बजे भोरे भौजीक चाह संग सभक निन्न फूजि गेल आ हमरा लोकनि साहित्यक विभिन्न पक्ष पर सार्थक विमर्श करैत करीब दिनक दस बजा देल ।
दोसर दिन दिनुका भोजनक व्यवस्था छल श्री मनोज शाण्डिल्यक आवास पर । हमरा लोकनि तँ एत्तहि रूकल रही आ ओम्हर सँ श्री शिवशंकर श्रीनिवास आ श्री चन्द्रमोहन कर्ण जी सपरिवार एलाह आ हमरा लोकनि एक संग बैसि भोजन कएल । फेर घंटा-दू घंटा चलल गप्प-सरक्का । एक बातक जिज्ञासा छल जे दू-दिवसीय कार्यक्रम मे दोसर दिनुक कार्यक्रम स्थल ओएह अछि वा कतौ आन ठाम । एकटा बड़ा विलक्षण जानकारी भेटल जे दोसर दिनुक कार्यक्रम अध्यक्ष जीक आवास पर होइत अछि आ सभ गोटेकेँ भोजनक व्यवस्था सेहो ओत्तहि रहैछ । हमरा लोकनि संध्या काल फेर ओहिना अपन-अपन गाड़ी सँ अध्यक्ष जीक आवास पर पहुँचलौं । गोट पचास टा कुर्सी लागल एकटा बड़का टेबुल राखल आ ओहि ठाम एकटा बैनर टांगल “शकुन्तला-भुवनेश्वर मैथिली संवर्धन न्यास” । ज्ञात भेल जे ई न्यास श्री चन्द्रमोहन कर्ण जीक माता-पिताक नाम सँ अछि आ ई दोसर दिनुक साहित्य गोष्ठी अही बैनरक अंतर्गत होइत अछि । साहित्यक प्रति एतेक निष्ठा, एतेक अभिरुचि आ एतेक समर्पणता देखि आस्था जागब स्वाभाविक अछि । आजुक दिन मात्र अतिथि लोकनिकेँ सैर भ’ क’ सूनल जाय ताहि उद्देश्य सँ एहि कार्यक्रमक आयोजन होइत अछि आ तैं स्थानीय सृजनधर्मी लोकनि मात्र एक श्रोताक रूपमे उपस्थित छलाह । तीनू वरिष्ठ अतिथिकेँ मंचस्थ क’ किछु उपहार दय सम्मानित कएल गेल आ तकरा बाद प्रारम्भ भेल संध्या गोष्ठी ।
आइ पुनः गुँजन श्रीकेँ संचालनक जिम्मा भेटल छलनि । अशोक मेहता सरक रंग-बिरंगक गीत संग प्रारम्भ भेल कार्यक्रम श्रीनिवास सरक कथा, प्रवीण जीक कविता, हमर कविता पाठक पश्चात अंत मे आदरणीय श्री बुद्धिनाथ झा जीक काव्य पाठक संग आजुक सांध्य गोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न भेल । पहिल दिनक कार्यक्रम मे हुनक ससमय नहि पहुँच पाएब सँ जतबा हमरा लोकनिकेँ नोकसानक बोध होइत रहल ताहि सँ कएक गुना बेसी आइ लाभान्वित छलहुँ । वर्तमान साहित्य मे कथा, कविता, गीत, गजल, उपन्यास, नाटक आदि विधा पर संतोषजनक काज भ’ रहलैक अछि मुदा खंडकाव्य, महाकाव्य आदि पर तेना भ’ क’ किनको ध्यानाकर्षण नहि छनि । ओनहियो साहित्यक गंभीर पक्ष सँ बेसी मनोरंजन पर बेसी काज भ’ रहलैक अछि तेना सन स्थिति मे मैथिली मे महाभारत महाकाव्यक रचना क’ मैथिली साहित्य कोष संवर्धन मे जे योगदान देलनि अछि से हमरा तूरकेँ हुनका प्रति कृतज्ञ बनबैत अछि । उक्त महाकाव्य एखन प्रेस मे अछि आ तत्काल हमरा लोकनिकेँ एकर पांडुलिपिक अंश सुनौलनि । करीब एक घंटा सुनलाक बादो जेना मोन तृप्त नहि भेल कारण हुनक कहबाक शैली, भाषाक सरलता, छन्द मिलान आ शब्द सौन्दर्यता कतौ ने कतौ सभकेँ अपनामे बान्हि रखने छल । रात्रि भोजनमे माँछ-भात आ सादा भोजन दुनूक व्यवस्था छल । अपन-अपन रुचिक अनुसार सभ गोटे भोजन कएल आ ओतय सँ प्रस्थान कएल । प्रवीण जी ओत्तहि सँ सोझे लातूड़क कैब बुक करा लेने छलाह आ शेष हमरा लोकनि आबि गेलौं मल्ल्मपेट स्थित मनोज शाण्डिल्यक आवास पर ।
मनोज शाण्डिल्यक आवास एकटा आवास सँ बेसी पुस्तकालय बुझना जाइछ । जेम्हर देखू तेम्हर पोथिए-पोथी । पूर्ण साहित्यिक परिवेश । ओहिठाम दिन की आ राति की से नहि तँ कखनो भाँजे चलल आ ने कखनो अखरबे कएल । यात्राक थकान, दू-दिन व्यस्तता आ तैयो मोन खनहन लागय, एकोरत्ती उत्साह मे कमी नै । वर्तमान साहित्यक स्थिति एवं साहित्यकार लोकनिक देश आ समाजक प्रति कर्त्तव्य पर एक बैसकी मे घंटाक घंटा अही सभ पर विमर्श होइत रहैत छल । फल्लां पोथी पढ़ने छी, फल्लां कविक कविता पढ़ने छी आ से मात्र मैथिलीए साहित्य टा नहि हिन्दी,अंग्रेजी साहित्यक सेहो समानांतर चर्चा । एहि सँ पूर्व प्रो. अशोक मेहता सरक नाम मात्र सँ परिचय छल, ओना पहिल भेंट दिल्लीक मैथिली लिटरेचर फेस्टिवल-२०१८ मे भेल मुदा प्रत्यक्ष परिचय तेना भ’ क’ नहि छल । एहि बेर हुनक सान्निध्य पेबाक सुअवसर भेटल आ कएक दृष्टिकोण सँ लाभप्रद रहल । एहि खेप हिनका सँ आशीर्वाद स्वरुप दू गोट पोथी क्रमशः ‘व्यक्तिवाचक’ आ ‘तात्पर्य’ सेहो भेटल । विकास वत्सनाभक परिचय जहिना एक नीक कविक रूपमे अछि तहिना एक कुशल व्यक्तित्वक रूपमे सेहो अछि । प्रसंगवश मोन पड़ैत अछि दिल्लीक एक नीजी स्कूलक टैगलाइन “गुडनेस बिफोर ग्रेटनेस” अर्थात् महान बनबा सँ पहिने भल हएब आवश्यक आ से गुण हिनका मे देखबा लेल भेटल । एबा सँ एक घंटा पहिने हमरा लोकनि एकान्त मे बैसि अपन युवा तूरक किछु व्यक्तित्व आ हुनक सृजनक मात्र सकारात्मक पक्ष पर चर्च कएल आ ताहि क्रममे हिनका मुँहे एको बेर ककरो प्रति पूर्वाग्रहक आभास नहि भेल आ इएह स्वभाव हिनक उन्नति आ सोचक एक उत्तम माध्यम छनि, बाँकी सृजनशीलताक संग-संग गहन अध्ययनशील तँ छथिहे ताहि मे कोनो दू-मत नहि ।
एही सभक बीच सैंडीक क्रियाकलाप सभ सेहो देखना जाए । कखनो काल सोची जे ई सैंडी कोनो नीक कर्म केने छल जे हिनका घर मे पोसा रहल अछि, कोनो मनुक्ख रहैत तँ एकटा स्थापित कवि भ’ गेल रहैत, ओना मनुखाह तँ भ’ए गेल छल तैं ने बेर-बेर घूमिक’ हमरे सभक बीच मे आबि संहिया जाए । आइ तँ समूचा राति सभ गोटे जगले रही । हमरो छ: बजे भोरे ट्रेन छल तैं एकटा घंटा पहिनहि मने पाँचे बजे स्टेशन विदा हेबाक छल । राति भरि चाह पर सँ चाह, कॉफी पर सँ कॉफी । शारदा जी मे नामानुरूप शारदाक गुण संग-संग लक्ष्मीक सेहो सभटा गुण विद्यमान छनि । कखनो मूँह मलीन नै, कखनो अगुताहटि नै, ई सभ गुण हुनक स्त्रीत्व आ ममत्व केँ आर बेसी लगीच सँ चिन्हबाक अवसर देलक । भारत मे नारी सशक्तिकरण पर ढ़ेर विमर्श होइत रहैछ मुदा धरातलीय सत्य किछु आर देखना जाइछ । एकटा सशक्त नारी अपन सार्थक सोचक अनुरूप समाजमे परिवर्तन अनबाक चेष्टा करैछ चाहे माध्यम जे होइक । शारदा जी एक लेखिकाक रूपमे, एक शिक्षिकाक रूपमे, एक पत्नीक रूपमे, एक पुतहुक रूपमे, एक बहिनक रूपमे, एक बेटीक रूपमे, एक संस्कृतिवाहिकाक रूपमे आदि जे कोनो गुण होइछ तकरा समाहित क’ स्वछन्द विचारधाराक संग उत्तरोत्तर आगाँ बढ़ि रहलीह अछि । एक सशक्त नारीक एहि सँ पैघ उदाहरण आर की भ’ सकैछ ।
गप्प-विमर्श होइत-होइत भोरुक पाँच बाजि गेल । स्टेशन जेबा लेल कैब बुक करबा लेने रही सेहो आब फ्लैटक सोझा आबि हॉरन द’ रहल छल । ओंघा तँ सभ रहल छलाह मुदा आब किछु कालमे हमरा विदा केलाक बाद सूती से सोचि कियो सूतथि नै । ओना गुँजन जी आ मनोज भैया झपकी ल’ रहल छलाह मुदा गाड़ी अबिते ओहो सभ उठि संगे नीचा तक एलाह । एम्हर नीचा बला फ्लोर पर आराम करैत दादा (श्री बुद्धिनाथ झा) चारिये बजे स्नान क’ धोती फेरैत रहथि, पुछला पर ज्ञात भेल जे श्री चन्द्रमोहन कर्ण आ श्री शिवशंकर श्रीनिवास जीक संग हैदराबादक कोनो प्रसिद्ध मंदिर जेबाक नियार छनि । सभ गोटे सँ यथायोग्य आशीर्वाद आ विदा लैत पुनः स्टेशन दिस विदा भेलौं । २७ नवम्बर,२०१८ क’ वापसीक टिकट तेलांगना एक्सप्रेसक छल । दिल्ली हेतु ससमय ०६:०० बजे प्रस्थान कएल । अपर बर्थक टिकट कन्फर्म छल । रतुका जगरना छल । सीट पर जा क’ एक-दू घंटा बात सूति रहल रही । एबा काल सनेश मे भेटल पोथी बाटक संगी छल । बाट मे जेना जे अवसर भेटल पढ़ैत बाट बितैत रहल । एहि यात्राक बहुतो अनुभव, बहुतो बात सभ मोन पड़ैत रहल । हालांकि ई संस्मरण लिखबा बेर बहुतो एहेन गप्प सम्भव होय जे नै ध्यान मे आएल होए कारण संस्मरण लिखबाक कोनो पूर्व-नियार नै छल आ तैं कतौ बिन्दुवार नोट सेहो नै केने रही । दिल्लीक मैसाम आयोजित विश्व मातृभाषा दिवस पर वक्ताक रूपमे आमंत्रित अतिथि मनोज शाण्डिल्य सँ दिल्लीमे भेंटघाँटक क्रममे ज्ञात भेल जे संस्था द्वारा बर्ख मे दू गोट स्मारिका प्रकाशित होइत अछि आ ताहि हेतु मई मास मे प्रकाशित होमय जा रहल स्मारिका हेतु अपन रचना प्रेषित करी । स्मारिका प्रकाशनक समय सीमा देखैत जतबा स्मृति मे जोगाएल छल से कागत पर उतारबाक चेष्टा कएल अछि ।
No comments:
Post a Comment