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Tuesday, December 30, 2014

नहि लागइ दुज्जन हासा


दिल्लीक प्रेक्षक पर अपन मजगूत पकड़ बनौने मैथिली रंगमंडलक चित-परिचित संस्था मिथिलांगनसमय समय पर प्रयोगात्मक नाटकक तैयारीक संग उपस्थित दर्शककें आकर्षित करबामे प्रारम्भे ससफल रहल अछि. विगत २२ तारीख २०१४ क’ (सोमदिन) मंडी हाउस स्थित कमानी ऑडिटोरियममे मैथिली भोजपुरी साहित्य अकादमी,दिल्ली सरकारक तत्त्वावधानमे आयोजित आ मिथिलांगनकेर प्रस्तुति नहि लागइ दुज्जन हासाकेर मंचन देखबा लेल भाखा आ संस्कृति प्रेमी लोकनि दिल्लीक एहि जुआएल कनकन्नीमे कार्यालय स’ (खासकनोकरीहा लोक सभ) सबेर सकाल निकलि ककार्यक्रमक निर्धारित समय पर पहुँच आँइख आ कान दुन्नू पाथिकमंच दिस टकटक्की लगौने बैसल छलाह आ हुनका लोकनिक मध्य एकटा कुर्सी धेने हमहूँ बैसल रही. नाटक आदि सअंत धरि बेस रोचक, मनोरंजक आ सन्देशपूर्ण रहल. साहित्य,संगीत आ संस्कृतिकर्मी लोकनिकें जछोड़ि देल जाए तविद्यापतिक जीवन आ काव्य रसधाराक सम्मिश्रित प्रवाहकें संग दिशायमान हएब वर्तमान जुगक युवक वास्ते बड्ड कठिनाह काज अछि मने झेलब समान अछि कारण हुनका लोकनिकें बनाबटी प्रेम सम्बन्ध पर करोड़क करोड़ बजटकें बनाओल गेल हिन्दी/अंगरेजी सिनेमा आ पॉप,रॉक,फ्यूजन आदि ससरावोर संगीतक सोझा ई प्रयोग अनसोहाँत जेंकॉ बुझना जाइ छनि. नाटकक लेखक रोहिणी रमण झाओहि समस्त मिथककें तोड़ैत विद्यापतिक जीवनक मूल कथाकें जीवंत राखि समय केर मांगक अनुरूप हास्य,करुण आ व्यंग्यक मसल्ला सभरल संवाद सदर्शककें अनवरत मंच सजोड़ि रखबाक जे साहसिक प्रयास केने छथि ताहि हेतु निश्चितरूपे साधुवादक पात्र छथि. कथाकें रोचक बनेबा लेल नाटकमे नाटकक आयोजन आ ताहिमे सूत्रधार, नटी ,घूरन आ फिरनकें हाव भाव आ प्रस्तुतिकरण दर्शककें थोपरी बजेबा लेल आ लोटपोट करबा लेल बेर-बेर बाध्य करैत छल.

नाटक पंडित भवनाथ मिश्रक अनन्य शिष्य आ विस्फी ग्रामवासी गणेश ठाकुरक बालक विद्यापति ठाकुरक काव्य रचना आ जीवन गाथा पर आधारित छल. कामिनीक रूप वर्णित रचना जखन काने-कान जत्र-तत्र पहुँचलागल तलोक सभ एकरा विद्यापतिक यौवन दोषक संज्ञा देइत हुनक गुरुकें उपराग देनाइ शुरू कदेलनि जखन कि विद्यापतिक कथनानुसार प्रेम रस भावकें काव्यमे समाहित करचल गेल सभटा रचना राधा कृष्णक वास्ते समर्पित छल. गुरूजी विद्यापतिक सद्गुणी चरित्रकें जनितो ओहि समाजक कुचेष्टित अवधारणा सदूर चल जेबाक आदेश देलनि ई सोचि जे हिनक जीवन आ रचनाकर्म कुंठित नैं भजानि (मुदा ई गप्प अपना मोनेमे राखि हृदय समूर्धन्य आ महाकवि बनबाक आशीर्वाद देइत) आश्रम छोड़ि जेबाक आज्ञा देलनि. गुरूजीक आज्ञानुसार हुनका आश्रम सबहराए परलनि. विद्यापति त्रिलोकीनाथ महादेवक अनन्य भक्त छलाह. आश्रम सबहरेलाक पश्चात दिन-राइत महादेवक नचारी, महेशवाणी आदि रचनाकर्ममे तल्लीन रहलगला. विद्यापतिक एहि भक्ति सप्रसन्न भमहादेव स्वयं मनुक्ख (उगना) रूपमे अवतरित भचाकर रखबाक आग्रह केलनि आ हुनक सेवामे लागि गेला. ओना विद्यापतिकें हुनक अद्वितीय क्रियाकलाप सभ सकखनो काल कअसाधारण मनुक्ख हेबाक आभास होमय लगलनि तथापि अन्ठा कअपन काजमे लागि जाइथ. एक दिन जखन राजदरबार जाइत रहथि तबाटमे पियास सबेकल भगेला जतपाइनक एक बूँद पाएब कठिन छल. विद्यापति पियासे मूर्छित भठामहि लटुआ गेला. आब उगना की करत ? उगना (महादेव) तक्रोधे लाल जे एहि निर्जन बोनमे हमरा भक्त पर प्यासक दुष्प्रहार कोन दुष्ट केलक ? मुदा हुनक ई रौद्र रूप देखि स्वयं पार्वती सोझा आबि कर जोड़ि ठाढ़ भगेली, हे स्वामी ! अपनें हिनक सेवामे एत्तेक तल्लीन भगेलौं जे कैलाश नगरी आ बाल-बच्चा संग हमरो बिसरि गेलौं तैं हम हिनका पर पिपासाक प्रयोग केने छलौं जे अहू बहन्ने अहाँकें हमरा सभक ध्यान आओत. हे नाथ ! आब बहुत भेल आबो चलू अपन लोक. महादेव शांत होइत पार्वतीकें आश्वासन देलनि जे हिनका हम असगर एहि अवस्थामे छोड़ि नैं जा पाएब तैं हिनक तृष्णाकें शांत कअबिलम्ब अपन लोक आबि जाएब. उगना महाकविकें उठबैत जल पिऔलनि. महाकविकें जलमे गंगाजलक स्वादक अनुभूति होइत उगना सओ स्थान देखेबाक इच्छा जतौलनि मुदा उगनाकें रंग-बिरंगक बहन्ना आ लटपटाइत बोली सआभास भगेलनि जे ओ स्वयं साक्षात त्रिलोकीनाथ महादेव छथि आ जाबैत ओ हुनका लग जैतथि ताबैत महादेव अंतर्ध्यान.

एहि ठाम एकटा गप स्पष्ट करब आवश्यक जे आइ धरि विद्यापतिक संबंधमे जे किछु किम्वदन्ती अछि ओ ई अछि जे जखन विद्यापति उगनाकें चीन्हि जाइ छथि तउगना ई वचन लैत अछि जे ई गप्प हमरा आ अहाँकें छोड़ि ककरो नैं बुझबाक चाही अन्यथा हम अहाँक संग ओही दिन सछोड़ि देब. स्वामी आ चाकरक ई क्रम अनवरत चलैत रहैत अछि मुदा एक दिन उगनाकें महादेवक पूजा वास्ते फूल आ बेलपात अनबामे बिलम्ब हेबाक कारणें सुधीरा (विद्यापतिक अर्धांगिनी) क्रोधित होइत हुनका पर खोरनाठ (अधजरुआ जारैन) समारबा लेल दौगैत छथि आ से देखिते विद्यापतिक मूँह सहुनक महादेव हेबाक बात बजा जाइत छनि आ तत्क्षण उगना अंतर्ध्यान भजाइछ. सम्पूर्ण नाटक देखलाक पश्चात एहेन बुझना गेल जे उगना-विद्यापति बला प्रसंगकें एत्तहि समेटबाक पाँछा संभवतः नाटकक मंचन अवधिमे  समयाभाव वा विद्यापतिक जीवनकें एहि घटना सआंशिक रूप सजोड़ैत महाकाव्य रचना यात्रामे निरंतरता राखि राजा शिव सिंह आ रानी लखिमाकें केन्द्रित कआगाँ बढ़ेबाक उद्देश्य सेहो भसकैइयै.

राजा शिव सिंह महाकवि विद्यापतिक बालसखा छलाह तैं हुनका दुनू गोटेक मध्य विदु (विद्यापति) आ शिवू (शिव सिंह) केर संबोधन सवार्तालाप होइत छल आ महाकवि हुनक दरबारक मुख्य रत्नमे सएक कविकोकिलक उपाधि सनियुक्त कएल गेलाह. समूचा देशमे मुगलकें साम्राज्य छल आ तदनुरूप ओ किसान वर्गादिकें जबर्दस्ती मलगुजारी देबा लेल बाध्य करैत छल असूलीकें क्रममे कत्तेको बेर हिंसात्मक प्रवृतिक उपयोग करैत छल. राजा शिव सिंहकें मिथिला क्षेत्रक प्रजा पर भरहल अत्यचारक जखन जानकारी भेटलनि तविचलित भओकरा लोकनि सजुद्ध करबाक घोषणा कदेलनि. राजा शिव सिंह अपन बालसखा विद्यापतिकें रानी लखिमाकें सुरक्षित स्थान पर लजेबाक आदेश दमुगल सैनिक सभसजुद्ध पर निकलि गेला आ वीरगतिकें प्राप्त केलनि. रानी लखिमा एहि सभ बात सअनभिज्ञ विद्यापतिक संग रोने-बोने बौआइत रहली आ भिन्न-भिन्न समाजक लोक सभ हुनका लोकनिक सम्बन्धमे अनाप-सनाप चर्चा करैत लांछना लगबलगलनि. अनायास एक राइत स्वप्नमे लखिमा देखली जे महाराज मुगल सैनिकक हाथे मारल गेला आ हुनका वीरगतिकें प्राप्त भगेलनि. स्वप्नक वियोगमे रानी लखिमा सेहो अपन प्राण तजि देली आ चिरकालकें वास्ते शांत भगेली. विद्यापति एहि सभ घटना सआहत भमहाप्रयाण लेल प्रस्थान कलेलनि.

उपरोक्त समस्त ऐतिहासिक घटनाक्रमकें आँखिक सोझा प्रस्तुत करबाक जे अद्भुत प्रयास केलनि अछि से श्रेय निश्चितरूपे रंगमंडल प्रमुख आ एहि नाटकक निर्देशक संजय चौधरीकें जाइ छनि आ हुनक डेगमे डेग मिला कअप्पन सए प्रतिशत समर्पित आ लगनशील अभिनय क्षमता सइतिहासकें जियाकरखबामे जाहि कलाकारक उल्लेखनीय आ प्रशंसनीय योगदान रहल अछि हुनका बिसरब बेइमानी हएत. सूत्रधारकें रूपमे मैथिली फिल्म आ रंगमंचक वरिष्ठ अभिनेता शुभ नारायण झाकें मंच पर बेर-बेर उपस्थित होइत देखि कखनो काल कजेना कुमार शैलेन्द्र जीक आभास होइत छल कारण हुनका ओही वस्त्र परिधानमे बरख २०११मे मिथिलांगनक प्रस्तुति छुतहा घैलमे नटक भूमिकामे देखने रही. शुभ नारायण जीक अप्पन अभिनय छवि छनि जेकि बेस रोचक आ प्रभावी रहल कारण ध्यान भंग होइत दर्शककें कोना मंच दिस ध्यानाकर्षण होए से खोराक नीक जेंकां जनै छथि. मैथिली फिल्म आ रंगमंचक चर्चित युवा अभिनेता अनिल मिश्राराजा शिव सिंहक पात्र लेल सटीक चयन छल कारण हुनक कद-काठी आ अभिनयमे ओ सभटा गुण समाहित छल जेकि एकटा जमींदार वा राजाकें प्रवृतिमे देखबामे अबैछ. मुकेश दत्ततीन रूपमे देखेला गुड़कुन/घूरन आ उगना तीनू रूपमे बेजोर अभिनय. संजीव बिट्टूसेहो फिरनकें भूमिकामे सूत्रधार आ घूरन संग फिट छलाह आ बेस हास्य विनोद करौलनि आ तहिना ई तीनू गोटे थोपरी हंसोथि-हंसोथि घर लजेबामे सफल रहला. नटीकें रूपमे अंजली झा”, विद्यापतिकें रूपमे राजेश कर्ण”, लखिमाकें रूपमे साक्षी मिश्रा”, पार्वतीकें रूपमे पूजा श्री”, वृद्ध ग्रामीणक रूपमे रोहिणी रमण झा”, पंडित भवनाथ मिश्रक रूपमे रोहित झा”, सैनिकक रूपमे पीयूष खंडूरीभारत भूषण”, भट्ट/ग्रामीणक रूपमे प्रशांत कुमार”, पक्षधर/ग्रामीणक रूपमे अखिल विनयआदिकें अभिनय अद्भुत, प्रशंसनीय आ सराहनीय रहल. मंचक पाँछा- वस्त्र विन्यास अभय चौधरी”, नृत्य वर्षा दासईशा दास”, प्रकाश परिकल्पना सुबोध सोलंकी”, रूप सज्जा दुष्यन्त”, मंच सज्जा सरिता दास”. संगीत सुन्दरम”, पार्श्व स्वर सुन्दरम” , “प्रियंका दासरूपम मिश्रा”, ढोलक टुनटुनआदि.

विद्यापतिक जीवन पर आधारित नाटक आ ताहिमे हुनक गीतक भावकें स्वर  देब आ संगीतबद्ध करब सभसबेसी कठिनाह काज अछि मुदा ज’ “सुन्दरमसन मिथिलापूत संगीत साधक भजाए तबुझू जे विद्यापतिक गीतकें मौलिकताक संग सहजरूपे प्रस्तुत कएल जा सकैछ. जत्तेक बेर आ जत्तेक गीत हुनक पार्श्व गायनमे सुनैत छलौं बुझू जे रोइंयाँ ठाढ़ भजाइत छल आ लगैत छल जे विद्यापतिक गीतकें यथोचित सम्मान भेट रहल छनि.

कार्यक्रमक समापनमे मिथिलाक दू गोट सपूत जेकि रंगजगतमे सिद्धहस्त कलाकारक रूपमे जानल जाइत रहलाह अछि स्व. लक्ष्मी रमण मिश्रा (अलार्म नाम सप्रसिद्ध) आ स्व. कुमार शैलेन्द्र जिनक अतुल्य योगदानकें मिथिलाक इतिहासमे कहियो नैं बिसरल जा सकैछ केर असामयिक निधन सदुखी मैथिली भोजपुरी साहित्य अकादमीकें पदाधिकारीगण, “मिथिलांगनपरिवारक सदस्य सहित उपस्थित दर्शक लोकनि हुनका दुन्नू गोटेकें स्मरण करैत ठाढ़ भदू मिनटक मौन राखि श्रद्धांजलि देलनि.

Sunday, December 21, 2014

"रोमियो-जूलियट" बनाम "चान-चकोर"


दिल्ली आ लगीचक क्षेत्रक प्रेक्षक लोकनिकें समय समय पर नाटकक खोराक परसबा लए तत्पर मैथिली रंग मंचक नामी संस्था मैलोरंगद्वारा १५ दिसम्बर २०१४ (सोमदिन) मैथिली नाटक चान-चकोरकेर सफलतापूर्वक मंचन कएल गेल .

कार्यक्रमक पहिल सत्रमे मैलोरंग द्वारा दू गोट सम्मान ज्योतिरीश्वर सम्मान आ रंगकर्मी श्रीकांत मंडल पुरस्कार जेकि प्रतिवर्ष रंगकर्मक क्षेत्रमे हुनक अद्भुत प्रतिभा लेल देल जाइत रहल अछि केर आयोजन छल जेकि प्रायोजित छल मिथिलानी आ समाजसेवी डा. ममता ठाकुर द्वारा. ज्योतिरीश्वर सम्मान हेतु चयनित छला पटना रेडियो स्टेशन सप्रसारित होमय बला चौपालनामक नियमित कार्यक्रमक प्रस्तोता आ वरिष्ठ अभिनेता छत्रानन्द सिंह झा उर्फ बटुकभाइ आ रंगकर्मी श्रीकांत मंडल पुरस्कार हेतु युवा अभिनेता आशुतोष अभिज्ञ जेकि पटना स्थित भंगिमाक माध्यम ससमूचा देशमे बेस नाओं करहल छथि.

सम्मान समारोहक पश्चात मैलोरंगक ऑफिशियल वेबसाइट मैलोरंग डॉट कॉमआ प्रसिद्ध नाटककार आ मैलोरंग संस्थाक अध्यक्ष महेन्द्र मलंगियाक नाम सप्रकाशित पुस्तक महेन्द्र मलंगिया : जीवन एवं सृजनकेर विमोचन सेहो कएल गेल.

कार्यक्रमक दोसर सत्रमे प्रारम्भ भेल महीनो पूर्व नियारल आ अभ्यासल नाटक चान-चकोर”. ज्ञात होए कि चान-चकोर आंग्ल भाखाक सुप्रसिद्ध नाटककार विलियम शेक्सपीयर रचित जगजियार ऐतिहासिक नाटक रोमियो-जूलियटकेर मैथिली अनुवाद आ परिकल्पना अछि जेकि स्वयं मैलोरंग केर निदेशक प्रकाश झा केने छथि. मूल रचनामे रोमियो-जूलियटप्रेमक एकटा एहेन उपमा अछि जे ऊँच-नीच, जाति-पाति आ गरीब-धनिक सन रुढ़िवादी बन्हन के मिथ्या साबित करैमे सफल रहल अछि. प्रेमक एहि मूल कथाकें आधार पर कत्तेको सिनेमा आ नाटक रचल गेल. रामेन्द्र (रोमियो) एकटा नीच जातिक युवा जकरा एकटा उच्च खानदानक बेटी जूली (जूलियट) सप्रेम भजाइत छैक आ एम्हर जूलीक विवाह वास्ते सुयोग्य वरकें क्रममे राजकुमार प्रताप केर चयन कैल जाइछ मुदा विधिनाकें लिखल एहेन जे रामेन्द्र आ जूलीकें प्रेम शनैः शनैः दुन्नू दिस एतेक प्रभावी होमय लागल जे गुप्त रूप सगामक एक मंदिरमे भगवान आ पंडितकें साक्षी मानि एक-दोसराकें संग जीयब-मरब के गाँठ बान्हि परिणय सूत्रमे बन्हि जाइत अछि मुदा खिस्सा एत्तहि समाप्त नैं होइ छै . ओकरा दुन्नूकें एहि प्रेमक मध्य जाति-पाति एहेन बाधा भजाइत छैक जे रामेन्द्रकें अपन बालसखा मानेन्द्रक हत्या सजेकि जूली केर मसिऔत भाए राजा बाबूक हाथ सआ तत्पश्चात राजा बाबूक हत्या रामेन्द्रक हाथ समने दू टा हत्याक संग चुकबपरैत छैक. हत्याक सजा रामेन्द्रकें जिला-जयवार सनिर्वासित करबाक आदेशक संग होइछ जेकि रामेन्द्र आ जूली दुन्नू गोटे वास्ते असह्य छल आ एक-एक दिन एक-दोसरा बिन काटब मोस्किल. जूलीकें अन्न-पानि त्यागबाक कारणें कमजोर हएब मृत्यु समान छल आ तहिना रामेन्द्रक वास्ते जूलीक संग नैं हएब मृत्यु समान. समसान घाटमे अचेत परल जूलीकें मृत मानि रामेन्द्र बिख खाए अपन प्राण ददैछ मुदा चेतना अबैत जूली अपन रामेन्द्रक मृत शरीर देखि अपनें हाथे धरगर चक्कू सअपन हत्या कलैत अछि आ एहि तरहें ई अमर प्रेम इतिहासमे अंकित भेल आ होइत आबि रहल अछि.

अंगरेजिया संस्कृतिकें रूढ़िवादी परम्परा पर कुठारघात कशेक्सपीयर जाहि विषय-वस्तुकें समेटने छथि ताहि विषय-वस्तुकें मिथिलाक संस्कृतिमे तदनुसार सन्हिया कओकरा आधुनिक रूपमे प्रस्तुत करब बड्ड बेसी साहसक संग सृजनकारी विषय अछि.निश्चितरूपे एहि प्रयोगमे युवा रंग निर्देशक प्रकाश झा सफल रहलाह अछि आ एहि सफल यात्रामे हुनक संग डेगमे-डेग मिलाकचलनिहार रंगकर्मी लोकनिक योगदानकें कथमपि बिसरल नैं जा सकैछ यथा : मुकेश झा (चान/रामेन्द्र/रोमियो) ,अनिल मिश्रा (जूलीक पिता),सत्या मिश्रा (चकोर/जूली/जूलियट),प्रवीण कश्यप (पंडितजी),संतोष कुमार (राजा बाबू/मसिऔत भाए),अमरजीत राय (रामेन्द्रक बालसखा/बालेन्द्र), अमित कुमार (रामेन्द्रक बालसखा/मानेन्द्र),मनोज पाण्डे (राजकुमार प्रताप),रमण कुमार (जग्गा),ज्योति झा (ककना वाली दाई),नीरा झा (जूलियटकें माए),राजीव रंजन झा (पार्श्व स्वर),राजीव मिश्रा (पार्श्व ध्वनि),अजीत मलंगिया (तबला वादन), अखिलेश कुमार (की-बोर्ड),दीपक ठाकुर (पार्श्व संगीत), गोविन्द जी (प्रकाश परिकल्पना) आदिकें योगदान उल्लेखनीय सह प्रशंसनीय रहल.