वर्तमान
पीढ़ीक किछु महत्त्वपूर्ण कथाकार मे ऋषि वशिष्ठ जीक कथा लेखन बेस आकर्षित करैत रहल
अछि। हिनक दू गोट पोथी जे एक सिटिंग मे बैसि पढ़ि जेबा लेल बाध्य केलक अछि ओ अछि
कथा संग्रह 'गाम सँ जाइत रेलगाड़ी' आ तकरा बाद हिनक नव प्रकाशित नाटकक पोथी 'बाबा दंडोत बच्चा जय सियाराम'।
हास्य
प्रधान नाटक बाबा दंडोत बच्चा जय सियाराम पढ़ैत काल प्रसंगानुकूल बेसी ठाम मूँह
दाबि क'
हँसबा लेल बाध्य करैछ अन्यथा रेलगाड़ीक सहयात्री लोकनिकेँ ई
बुझबा मे कनिको भाँगठ नहि हेतनि जे सोझा बैसल व्यक्ति असामान्य छथि आ से अन्ततः
भइए गेल,
कएक बेर अपनाकेँ ठहक्का लगेबा सँ नहि रोकि पाओल रही। एकर
मंचनक कल्पना मात्र सँ गुदगुदी लागि रहल अछि। नाटकक विषय वर्तमान सँ ल' क'
भविष्य धरि पूर्ण रूप सँ समकालीनता बोध कराओत एतबा आश्वस्त
छी। अवसर भेटय त'
एकर मंचन देखल जा सकैछ आ जँ पढ़बाक मोन होए तँ नवारम्भ
प्रकाशन,मधुबनी सँ ८०/- टाका मे कीनि क' अवस्से पढ़ू। ढ़ौआ वसूल हेबाक गारंटी हम्मर।
संजोग
एहेन जे हिनक उक्त दुन्नू पोथी गाम दिस जाइत-अबैत रेलगाड़ी जतराक क्रममे पढ़ल अछि।
दुन्नू पोथी पढ़लाक बाद जे किछु समानता देखल जाइत अछि ताहि सँ हिनक लेखककीय गुणकेँ
सहजहि अकानल जा सकैछ। स्थानीय समाज वा देश मे घटित कोनो नीक-बेजाए घटनाकेँ कथाक
केन्द्र मे राखब,
यथार्थबोधक परिवेशक निर्माण करब, सरल,सहज आ सर्वबोधगम्य भाषाक प्रयोग, संवाद मे गमैया टोन, शैली मे अनावश्यक आ विशेष पाण्डित्यक प्रयोग नहि करब हिनक मौलिक लेखनक गुण
अछि।
उक्त पोथी
प्रकाशन मे अनबा लेल लेखक श्री ऋषि वशिष्ठ जीकेँ साधुवाद संग आत्मीय शुभकामना!
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