विगत
किछु बरखक फेसबुकिया अध्ययन स’ ई बात त’ स्पष्ट भ’ गेल अछि जे मिथिला-मिथिलोत्थान
मे लागल मिथिलापूतक अभाव कहियो नहि छल मुदा सभक सोझा एतेक सहज रूपें वा ई कहू जे
कोनो सार्वजनिक मंच पर आब’ मे बहुत समय लागि जाइत छल. समय केर संग-संग जेना-जेना
तकनीकी विकासक क्रम बढैत गेल तहिना-तहिना सक्रिय मीडिया दिस स’ नव-पुरान सभ
प्रतिभा कें एकत्रित क’ एक मंच पर अनबाक चेष्टा निश्चित रूपें प्रशंसनीय आ सराहनीय अछि. संयोग एहन जे एही विकासक क्रम
मे फेसबुक सन सोशल नेटवर्क एतेक तेजी स’ पसरल जे नवतुरिया मित्र लोकनिक अद्वितीय आ
नवोदित प्रतिभा सभ स’ परिचित भेलहुं आ श्रेष्ठ लोकनि स’ मार्गदर्शन/आशीर्वचन पेबाक
अवसर सेहो भेटल.
लेखन मे बेसी अभिरूचि हेबाक कारणें कला आ साहित्य स’ जुड़बाक
चेष्टा अधिक रहैत अछि. अनेकानेक वेबसाइट सब पर रचनाधर्मी लोकनिक प्रकाशित
विचार/आलेख/समीक्षा/गीत/कविता/गजल/कथा/खिस्सा आदि कोनो प्रकारक पोस्ट पर एक सीमित
मर्यादाक निर्वाह करैत
प्रतिक्रिया/उत्साहवर्धन/आलोचना/विवेचना होयब स्वाभाविक छै कारण जे
ज्ञानवर्धन/सुधार हेतु इहो अत्यावश्यक छैक मुदा कोनो अनुपयुक्त विषय-वस्तु कें
केन्द्र मे राखि ओहि पर आरोप/प्रत्यारोप (घोंघाउज) केला स’ कतेक सार्थकता प्रदान क’
पाओत ई मीडिया आ सामाजिक अन्तर्जाल (सोशल नेटवर्क). हम सब कियैक ने सार्थक बिन्दु
दिस ध्यानाकर्षण क’ अनसोहांत गप्प सब कें अन्ठ’बैत सार्थक विषय-वस्तु मे अपन उर्जा
लगाबी. आरोप-प्रत्यारोप स’ आर त’ आर मुदा एकटा सबस’ पैघ नोकसान ई जे सृजनताक
ह्रासक संग-संग राजनीतिकरण केर प्रवेश
चिन्ताजनक.
ओना ज’
स्वस्थ राजनीति होए त’ नीक गप्प ताकि स्वस्थ सोच देखबा मे आओत मुदा राजनीति त’ दूर
कूटनीति बेसी भ’ रहल अवस्था मे़ं विकृत
सोच जगजियार भ’ रहल अछि. की हमरा लोकनि अही मानसिकताक संग-संग मिथिला-मिथिलोत्थानक
सपना देखि रहल छी ?
एक-दोसर केर मदति करबाक सामर्थ ज’ नैं अछि त’ कम स’ कम
टंगघिच्ची वा नीच देखेबाक वा विघ्न करब त’ ओकर समाधान नैं छैक. ज’ समाधान नैं बनि
सकी त’ व्यवधानक अधिकार कोन आधार पर ? हमरा लोकनि ज’ प्रवास क’ रहल छी त’ निश्चित रूपें अपन अर्थोपार्जन मे व्यस्त
रहैत किछु समय निकालि अपन माइअक कर्जक
दायित्व बूझि (जे जै जोगरक छी) ओकर निर्वाह लेल समर्पित रहैत छी. मथिला आ
मैथिली नाम पर कतेक संस्था छैक जाहि स’ ककरो रोजी-रोटी चलैत हैत? अपवादस्वरूप ज’ कियो एहेन छथि त’ ओ एहि क्षणिक सुख लेल
दीर्घकालीन अभागल हेताह. मुदा तहियो संस्थाक विस्तार आ विकास भ’ रहल अछि कारण जे
सभ अपन भाषा आ संस्कृति कें संजोगि क’ रखबा वास्ते दृढसंकल्पित छथि आ ज’ से त’ एहि
मे हर्ज़ कोन ?
कहबाक अभिप्राय ई जे हमरा लोकनि जहिना अपन परिवारक सदस्य
केर विषेशता कें सार्वजनिक कर’ मे आ अवगुण कें झांपि राख’ मे कतौ कोताही नैं करै
छी ठीक तहिना सार्वजनिक स्थल पर गारा-गंजन आ आरोप-प्रत्यारोप नै करी त’ संभवतः अपन
प्रान्त,
भाषा आ संस्कृतिक रक्षार्थ बिना कोनो अस्तित्वक स्वार्थ लाभ
ल’ उद्देश्यपूर्ति मे सहायक भ’ सकैत छी.
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