परमेसरकें नोटबंदीक अगिला दिनसँ सवारी भेटब किछु कम भ’ गेल छैक आ गृहस्थी चलेबा लेल चिन्ता बढ़ब स्वाभाविक छल । चिन्हरबा सवारी तँ आब बेसी काल कारेसँ जाइत देखाइ दैत छैक । ओहो लोकनि खुदरा-खुदरीक चक्करमे एखन क्रेडिट कार्डसँ गाड़ीमे बेसिएक’ पेट्रोल भरबा लैत हेतैक । परमेसर कइए की सकैत छल ? हाथ हिलाक’ बाय-बाय क’ दैत छलैक । कॉलेजिया छात्र सभ पूछि दै “अरे भाई पेटीएम यूज करते हो ?” परमेसर जिज्ञासावश पूछैक “नहीं भैया ऊ क्या होता है ?” कियो दोसर पूछि दैक “स्मार्टफोन रखे हो ? व्हाट्सैप,फेसबुक यूज करते हो?” फेर ओ सभ अपनेमे एक-दोसरकें बुझबैत कहैक “यार तुम भी ना, वो बेचारा रिक्शा चलाता है, स्मार्टफोन जानता भी नहीं होगा” फेर केओ टोकारा दैत कहै “अरे यार ! आजकल कौन व्हाट्सैप,फेसबुक यूज नहीं करता है ?” परमेसरकें धक् सँ मोन परलै, कहलकै “हँ भैया ! ऊ बड़का बला फोन हमरा बड़का भगिना रखले है, कहियोकला छुट्टी बला दिनमे हमरा आ ऊ अपन मतारी-बाबू को गामक लोक सुन का फोटो देखाता है” पहिल छात्र दोसर दिस इशारा करैत “समझ गया ना” फेर कोनो आन छात्र परमेसरकें बुझेबाक चेष्टा करैत “जैसे फेसबुक और व्हाट्सैप चलता है ना, वैसे ही इन्टरनेट से पेटीएम एप्प चलता है इसमें फोटो-वोटो नहीं पैसा का ट्रांजेक्शन होता है” फेर एकटा छात्र सलाह दैत “स्मार्टफोन रख लो, अभी काम आएगा, लोगों के पास भी अभी खुल्ले पैसे का दिक्कत होता है, पेटीएम कर दिया करेंगे”। परमेसरकें अपनो कएक बेर मोन भेल रहैक बड़का चायनीज मोबाइल किनबाक मुदा सालभरि नोत-हकार पूरैत-पूरैत हालत तेहेन पस्त भ’ गेल छैक जे एखन किछु दिन वास्ते विचार त्यागने छल, खैर ! से तँ जे से, मुदा हब द’ ककरो संग अपन विवशता साझा करबासँ सेहो परहेज रखैत अछि ।
नोटबंदीसँ मात्र परमेसरहि नै, समूचा देश प्रभावित छल । की गरीब आ की धनिक । आम लोक बेबस छल । सरकारी तंत्र द्वारा बिना कोनो पूर्व इंतजामहिकें एहेन कठोर निर्णय थोपि देल गेल छल । आमलोक जनैत छल जे हल्लो-फसाद क’क’ सरकार ई डेग आपिस नै लेत, तैं कहुना अल्पव्यय करैत किछु समय वास्ते गुँजाइश करबाक क्षमता बढौलक । सत्ता समर्थक लोकनि पूर्ण समर्थन करैत एकरा सफल बनेबा लेल कृतसंकल्पित रहथि मुदा विपक्षी लोकनि एकर विरोधमे आन्दोलनक विभिन्न पैतरा सभ अपना रहल छलाह । गरीबक दैनिक खर्चमे बाधक हेबाक हवाला किछु विशेष देल जाइत छलैक । विरोधक केन्द्रमे भने गरीबक प्रति सहानुभूति देखेबाक चेष्टा भ’ रहल छलैक मुदा सत्य ई रहैक जे धनिक वर्ग आ बैंकर्स केर साँठ-गाँठसँ धनिक वर्गक रहन-सहन आ अन्य खर्चमे कोनो व्यवधान नहि होइत छलैक । कतेक लोक तँ दू नम्बरकें एक नम्बर करबा लेल जोखिम लैत खूब कमेबो केलक । जाँचमे आओल किछु लोकक साँठ-गाँठ सार्वजनिक होइतहि मीडियामे सेहो उजागर भेल आ कतेको लोक जेल गेल । एहेन समयमे जागरूक आ संपन्न लोक लग एकटा नीक विकल्प छल ऑनलाइन शॉपिंग केर जकर ओ लोकनि बेस लाभ उठा रहल छलाह । पे-टीएम सेहो लेनदेनक वास्ते बेस प्रयोगमे आबि गेल छल हालांकि इहो इन्टरनेट संचालित एक एप्प अछि तैं बहुत एहेन वर्गक लोक एकर प्रयोगसँ वंचित छल तथापि किछु एहेन खर्च छल जाहिमे नगद मात्र केर विकल्प छल, जेनाकि रिक्शा भाड़ा, बस भाड़ा, पान-बीड़ी-सिगेरट आ एहेन बहुतो छोटछिन खर्च । ओना एकर नकारात्मक वा सकारात्मक जे किछु प्रभाव पड़ल होइक मुदा लोकक आपसी लेनेदेनमे सहयोगक भावना बढ़ल रहैक । जतय सहयोग बढ़तै ओतय सौहार्द्रता बढ़ब स्वाभाविक अछि ।
नोटबंदी भेले रहैक, मोहर दू-तीन दिन पर ऑफिसक निच्चा बला एचडीएफसी बैंक एटीएम पर घंटो-घंटा लाइनमे लागय आ एक दिनमे मात्र दू हजार टाका निकालि आवश्यक खर्च हेतु जोगाक’ राखय । पाइ अछैते कपचि-कपचिक’ खर्च करय । घरसँ दफ्तर एबाक-जेबाक माध्यम चार्टर्ड बस छलैक । संगमे डेबिट कार्ड आ दूटा ब्लैंक चेक तहिना साकांक्ष भ’ क’ राखय जेना मोबाइल आ रूमाल संगमे रखबाक एकटा रूटिन सन भ’ गेल रहैक, तथापि प्रतिदिन एकटा जोखिम रहैत छलैक जे जतय दस-बीस टाका सन छोट खर्च हैत आ तेहेन परिस्थिति मे जँ पाइ निंघटि जायत तँ की करब । जाहि बातक डर छलैक एक दिन सएह भेलैक । हलफी बला जाड़ आ धोनिसँ पूरा दिल्ली शहर घुप्प अन्हार मुदा आजुक संजोग एहेन जे बसमे चढितहि एकटा सीट खाली देखल, लप्पसँ बैसि गेल कारण एहेन संजोग किन्साइते भेटैत छलैक । मोहर कने कालमे सीट पर बैसल गरमा गेल छल । नेहरू प्लेस आएब-जाएबक क्रममे बसक रूट वाया ईस्ट ऑफ कैलाश रहैक आ एहेन दुर्जोग जे ओतय अबैत-अबैत बसमे कोनो तकनीकी खराबी आबि गेलैक । कंडक्टर द्वारा सवारी सभकें किछु काल वास्ते बाहर प्रतीक्षा करबाक आग्रह कएल गेलैक । किछु गोटेक कहब छलै जे “बेसी बिलम्ब छह तँ किछु किराया वापिस क’ दएह, हम सभ आगाँसँ कोनो बस पकड़ि लेब । मुदा ओ सभ जल्दी ठीक हेबाक आश्वासन दैत किराया वापिस नै केलकै । मोहरक संगमे एक मैथिल सहयात्री सेहो रहथि अभिषेक जिनकासँ किछुए दिन पूर्व मोहरकें नव-परिचय भेल छलैक । दुन्नू गोटे निच्चा आबि एकटा गाछ लग ठाढ़ भ’ गेल, मुदा से बेसी काल ठाढ़ नहि रहि पाओल कारण गाछ पर जमल ओसक मोटका-मोटका बूँद जैकेट पर खसय लागल छलैक । ओ लोकनि सहटिक’ एकटा पानक दोकानक कातमे लागल रिक्शा लग ठाढ़ भ’ गेल आ अपनामे नोटबंदी समस्या पर गप्प करय लागल “भाइ देखियौ दस टाका दुआरे घेराएल छी, संजोग एहेन जे संगमे आइ दू हजरिया नोट तँ अछि मुदा दस टाका खुदरा नहि अछि” । बेचारे अभिषेक सेहो कोनो प्रतिक्रिया नहि देलथिन, सम्भव होय जे ओहो ओहने समस्याक संभावनासँ आशंकित होथि वा संगमे जरूरतसँ फाजिल टाका नै होइन्ह ।
ई लोकनि गप्प करिते रहथि ताही क्रममे सोझासोझी नजैर गेलनि कारसँ उतरैत दू गोट युवती पर । दुन्नू युवती कार ओहिठाम कातमे ठाढ़क’ ससरिक’ च’ल एलीह पानक दोकान (खोका) पर । गपसपसँ दुन्नू सहकर्मी जकाँ लगैत छलि कारण ऑफिस बिलम्ब हेबाक बात सेहो क’ रहल छलि । दोकानदार सँ दूटा सिगरेट लैत नवका पंचसौआ नोट निकालि देलखिन मुदा दुकानदार लग ततबा खुल्ला नै रहैक आ तैं हुनके लोकनिसँ ओ खुदरा देबा लेल अनुरोध केलकनि । ओ लोकनि अपन-अपन वॉलेटमे एक बेर फेरसँ तकबाक प्रयास केलनि आ नै भेटला पर आपसी सहमति बनाय एक्कहि टा सिगरेटसँ काज चलेबाक नियार कयलनि । दुन्नू गोटे कार तक पैदल चलिते दू-दू कश लैत धुआँक छल्ला बनबैत गाड़ीमे चढ़ली आ ड्राइविंग सीट वाली युवती आधा जरिते सिगरेट सड़कक कातमे जुमाक’ फेक कार ड्राइव करैत विदा भ’ गेलीह । ताबैत मे मोहर आ अभिषेक दुनू मित्रक ध्यान गेलनि एक एहेन व्यक्ति पर जे देखलासँ असामान्य (पागल) सन लगैत छल, ओ अधजरू सिगरेट उठा दू-तीन कशमे समाप्त कय ओहो ओहिना धुआँइते फेकिक’ चल जाइत रहलै । ओ लोकनि जेम्हर मुँहे ठाढ़ भ’ ई दृश्य देखैत रहथि ठीक ओम्हरेसँ अबैत एक व्यक्ति ओकरा चप्पलसँ रगड़िक’ मिझबैत आ बड़बड़ाइत “ऊ तो पागल है ओकरा तो मत्थे नहीं है इसीलिए कोनो बाते नहीं आ ई पैसा बला सुन तो आर मथसुन्न होता है । एक तो जनानी होके सिगरेट धुकती है, कोमल करेज जराती है आ उप्पर से जरिते सिगेरट फेक देती है । बेसी इस्टाइल मारती है, राजादैब कहूँ आग लग गया तो ? आ ऊ पगलबा ऐसे थोड़े ही न’ नशेड़ी हो गया है !” कहैत आक्रोशित मुद्रामे आबि ओही रिक्शा पर बैसि गेल जाहि रिक्शा लग ठाढ़ भ’ ई लोकनि गप्प करैत रहथि । अस्सलमे ओएह ओहि रिक्शाक चालक छल आ अपन रिक्शा पर बैसि सवारीक प्रतीक्षा करय लागल । हिनका लोकनिकें मैथिलीमे गप्प करैत देखि कनेक काल किछु नहि बाजल मुदा ओकर मोन नहि मानलकै, जिज्ञासावश पूछि देलकनि “आपलोग बिहार के हैं ?” अभिषेक प्रत्युत्तर दैत कहलखिन “हाँ बिहार से हैं हम लोग, तुम्हारा घर कहाँ है ?” रिक्शावला बाजल “सर मैं भी बिहारी हूँ, मेरा घर पूर्णियाँ जिला है” मोहर पूछलकै “नाम की भेलह ?” रिक्शावला “परमेसर सदाय”, अभिषेक चट द’ कहलखिन “धू मरदे ! मैथिल कहक ने हौ ! बिहारी कियैक कहै छहक ?’ मोहर सेहो समर्थन करैत ओएह गप्प दोहरौलक “हँ परमेसर, भाइ ठीके कहै छ्थुन तों पूर्णियाँकें रहनिहार छह तहन तँ सुच्चा मैथिल ने भेलहक हौ ?” रिक्शावला बिनु संकोचे बाजल “सर ! हम तँ मुसहर छियै”, मोहर बाजल “मैथिल माने तों की बूझै छहक ?” परमेसर बाजल “मैथिल तँ ब्राह्मण आर होइ छथिन ने !” मोहरक मोन जेना व्यथित भ’ गेलै “परमेसर अझुका बाद ई गप्प नहि बजिह’, हम जातिक ब्राह्मण जरूर छी आ लोककें अपन परिचय बिहारी आ ब्राह्मणसँ पहिने मैथिल हेबाक दै छियै आ से ततबे अधिकारसँ तोंहू कहक” परमेसरकें जेना किछु ज्ञान भेटि गेलै, उत्साहित स्वरमे बाजल “ठीक छै सर कने काल खातिर अहाँकें बात मानि लेली, अहाँ ई कहू जे हम अपन जाति भाइमे इएह गप्प कहबै तँ कोइ मानतै ?” मोहर ओकरा बुझबैत कहलकै “तों सभ ई अवधारणा त्यागह आ आइसँ गाँठ बान्हि लए जे अपन जाति भाइकें तँ बुझाइए दहक संगे आनो लोक सभकें कहक जे मिथिलामे रहनिहार सभ जाति मैथिल छी” । परमेसर बाजल “सर ! अहाँ भेंट भेली से बड्ड खुशी भेल, हमरा आउर तँ पढ़ल-लिखल नै छियै, कोई पढ़ल-लिखल लोक मिलै छथिन तँ कुछ ने कुछ सीखैए लेल मिलै हए । बात तँ ठीके कहली बिहारमे रहनिहार बिहारी तँ मिथिलामे रहनिहार मैथिल कियैक ने ? निम्मन लागल अहाँक गप्प ।”
अभिषेक दुन्नू गोटेक वार्तालाप सूनि मंद-मंद मुस्की संग हिनका लोकनिक सभ गप्पमे सहमति रखैत नोटबंदी बला ज्वलंत मुद्दा दिस गप्प मोड़बाक प्रयास करैत बाजल “परमेसर एकटा बात कह’ तँ ऐ नोटबंदीसँ तोरा सभकें कोन फर्क पड़लह अछि ?” परमेसर एकरत्ती उदास स्वरमे बाजल “सर ! फर्क तँ बड्ड पड़ै छै, हमरा आउर तँ रोजिन्ना कमाक’ खाइ बला लोक छियै”.......अभिषेक बिच्चहि मे टोकैत “जा ! तँ तोरा कोन दिक्कत छह, तोहर आमदनी तँ रोज नगदिए ने छह हौ ?” परमेसर बाजल “से तँ नगदिए छै मुदा नगद देनिहार आउर लग अखनी टाकाकें एत्तेक टान रहै छै जे पहिने नाहित सवारिए नै जूमै छै, बुझू जे कहुनाक’ सीबि-साटिक’ घरक काम चलबै छियै ।" मोहर परमेसरक मोन टेबैत “मुदा इहो सरकार अतत्तह क’ देने छै, कह’ तँ गरीबक कोन दोख छै, बेचारा सभ भरि-भरि दिन लाइनमे लगै छै तखन जाक’ बैंक दू हजार टाका दै छै”, परमेसर उतंगिक’ बाजल “सर अहाँ सभ पढ़ल-लिखल लोक छियै तबो एहेन गप बाजै छियै ?”, मोहर चौंकल “कोन एहेन गप्प कहि देलियह हौ परमेसर?”, परमेसर छुटिते बाजल “ऐमे सरकारक कोन दोख छै सर ? एगो बात कहू तँ कोन एहेन गरीब हइ जकरा बैंकमे एत्ते पैसा होतैक आ रोजिन्ना दू-दू हजार टाका खरच भ’ जेतै ?” मोहर टोकैत “एक आदमी तँ चारि-पाँच दिनक बादे ने जाइत हेतैक हौ ?” परमेसर बाजल “नै यौ सर ! हमर भगिना नितरोजो जाइ हइ लाइनमे लागय, ओकरे नाहित पाँच गो आउर बेरोजगार छौंरा सभ ज’रे जाइ हइ । दू-तीन घंटा खड़ा रहै छै आ जकर पैसा निकालिक’ लाबै छै से एक गोरेकें दू-दू सए टाका दै हइ”, अभिषेक उत्सुक होइत “ऐं हौ परमेसर ई सभ ककर पाइ निकालै छै रोज ?” परमेसर व्यंग्य करैत “अहूँ आउर टेबै छी हमरा ? आइ ऐ बाबूक टाका, काल्हि ओहि बाबूक टाका आ ई बाबू आउर तँ आर सभटा सिस्टम बिगाड़ि देने हइ, देशकें नाशक’ देने हइ” । अभिषेक हँसैत ओकर पेटक गप जानय चाहैत अछि “अही बहन्ने रोजगार तँ भेटलै ने हौ !” परमेसर चट सँ बाजल “से कत्ते दिनका वास्ते,अहाँ अपने सोचियौ । जब सब कुछ ठीक भ’ जेतै तकरा बाद एकरा आउरकें के पुछतै ? तब चोरिए चकारी ने करतै ? ई कोनो गुण नै ने भेलै यौ, जै पर नोकरी रोजगार मिलतै”......ओ आक्रोशमे बजने जा रहल छल “हमर भगिना हइ तै लागी अपना बहिन आ पहुना लग कुछो नै बोलै छियै’, नै तँ हमरा ओइ छौंरा पर शंका हए जे अखनी बड़का-बड़का लोक लग पैसाकें टान हइ आ ओ यों टाकें चाइनीज मोबाइल आठ हजारमे किनलकै ग’, खैर जाए दियौ जब बापे-मतारीकें कोनो खोजबीन नै हइ तँ हमरा कोन काम हए” ।
मोहर ओकरासँ किछु आर मोनक गप्प लेबाक हेतु अभिषेक दिस ताकि “भाइ सरकार ई निर्णय बड्ड गलत लेलकै, देखियौ तँ ई बेचारा सभ कत्तेक परेशान छै” । परमेसरकें नै रहल गेलै “से कियै कहै छियै सर ? हमरा तँ बड्ड खुशी भेल जहिया सरकार नोटबंदी केलकै । लोक जत्ते दू-नम्बरी पैसा दबने छेलै सभटा देखार होतै । ऐं यौ सर एगो बात कहू ! कहियो एक्को गो काम बिना घूसकें कोइ करै हइ ? राशन कार्डमे गेलियै नाम जोड़ब’ तँ बलू पाँच सौ लगेगा, आधार कार्डमे बलू तीन सौ लगेगा । सरकार थोड़ेकबे ने ई पैसा लै छै । ई बाबू सहैब आउर सरकारकें बदनाम केने हइ । एहने-एहने दू-चारि गो आर काम करितै ने तब ओकरा आउरकें पता चलितै जे मेहनैत आ इमानदारीसँ एगो घर बनबैमे जिनगी कोना बीत जाइ हइ ।” अभिषेक बाजल “ऐं हौ परमेसर ! तोहर सवारी कमि गेलह अछि आ तहियो तों सरकारेक संग छहक ?” परमेसर आत्मविश्वास देखबैत बाजल “देखियौ सर ! सरकारक एत्ते बड़का निरनेमे तँ सभकें ने सहजोग करक चाही ! हम जाही जोगर छियै तेहने सहजोग करबै, अहाँ जाही जोगर छियै तेहने सहजोग करबै । बैमान आउरकें अखनी खबख्ब्बी छूटल हइ देखै नै छियै गरीबक नाम पर कत्ते राजनीति करै जाइ हइ, कहलकै ने ! जेना कते हीत ! चालिसे बरखक उमेरमे सभकें देखने छियै । हमरा आउर लेखे फूल छाप बला सरकार होइ आ कि हाथ छाप बला, जे केन्ने छै से मोन राखने छियै । इन्दिरा आवास मिलबे केलै, बीपीएलमे नाम हेब्बे करै, गैस कनेक्शन मिलबे केलै । सभ सरकार गरीब लै काम क’ जाइ छै । निच्चा बला दललबा आउर हमरा आउरकें मुरूख बूझि औंठा छाप ल’ क’ सभटा पाइ खा जा हइ ।”
मोहर ओकर बातक समर्थन करैत “परमेसर ऐ नोटबंदीमे तों केहेन सहयोग करै छहक सरकारकें से नै बुझलियह ?” परमेसर मोफलर सँ कान झंपैत “देखियौ सर ! अखिनते कुछ देर पहिने देखलियै ने दू गो धनिकहा मैडम केना खुदराक अभावमे एक्के गो सिगरेटमे साझी क’ क’ पिलकै आ जरलाहा फेकलकै तँ ऊ पगलबा पिलकै ।” दुन्नू मित्र टकटकी लगौने परमेसर दिस तकैत रहल आ ओ बजैत गेल “ई कोनो पहिल लोक नै छेलखिन जे बाँटिक’ सिगरेट पिलखिन, दिन भरिमे कता गोटेकें देखै छी । अखैन धनिकसँ धनिक लोक गरीब भ’ गेल हइ, बैंकमे ढेरी पैसा हइ मगर नगदी बेरामे ठनठन गोपाल । हम तँ धनिकहा आर से कुछो सीखी ने सीखी एगो गप्प तँ सिखली”, मोहर ओकर बात पूरा होइ सँ पहिने टोकैत “ऐं हौ सिगरेट पीनिहारसँ कोन ज्ञान भेटै छह ओ कोनो नीक गप्प थोड़े भेलै ?” परमेसर जवाब दैत “नै सर नीक गप्प तँ नहिए, बड्ड अधलाह गप्प भेलै, मुदा बाँटि-मीलिक’ पिलकै से तँ नीक भेलै ने । सीखै बला गप्प ई भेलै जे अखैन हिलिमिलिक’ गुजर करबाक समय छै” । अभिषेक टोकैत “माने नै बुझलियह परमेसर !” परमेसर उतारा दैत “एमकी दुर्गा पूजामे बाल बच्चा आउर घर गेल रहै । हमर घरवाली कहलकै जे ऐ बेर छठि गामेमे करबै । हमरो जेबाक छेलै मुदा हम बेराम पड़ि गेलियै, नै जा पेलियै । गाममे हमरा दुन्नू भाइक परिवार दू जग हइ ! छोटका भाइ जतबे शुद्धा ओकर घरवाली ततबे हड़काहि । रोज कुछो ने कुछो छोटछिन गप लै दुन्नू दियादिनी लड़ैत रहै छेलै । एगो परोछ्क बात हइ ऊ बेचारी हमर बड्ड धाख करै छै । हम जहिया कहियो दिल्लीसँ जाइ छियै हमरा खातिर नीक-नुकुत चीज बनाक’ द’ जाइ हइ । पूरा टोलाक लोक ओकरा बदमाश कहै छै, हँ जुबानक ओ कड़गर जरूर हइ मगर आत्मामे कुछो नै रखै हइ । सभटा खरापी ओकरे मे नै छै, लोक खौंझाइयो दै छै । किछ लोहोक दोख आ किछ लोहारोक दोख ।”
परमेसर ओहि दुन्नू गोटेकें अप्पन परिवारक सदस्य जेना बूझि पारिवारिक गप्प करैत निरन्तर बजैत रहल “देवउठान एकादशीक परात फोन केने रहियै । सभटा बच्चा रमझौहरि करैत रहै । पुछलियै, कै लए धियापुता आउर हल्ला करै छह ? ऊ कहलकै जे विसेसरकें बच्चा आउर जरे खेलाइ हइ ! पुछलियै, ऊ दुन्नू परानी अबै जाइ छह कि नहि ? सर ! की कहू घरवालीक जवाब सूनिक’ जे हमरा आश्चर्य लागल से की कहू !” मोहर उत्सुक होइत “कोन एहेन गप्प कहलकह हौ ?” परमेसर गम्भीर होइत बाजल “ऊ कहलकै जे आबिते जाइत नहि हइ, दुन्नू संझुका खेनाइयो छोटकीए बनबै हइ । जहियासँ नोटबंदी भेलै ओकरा हमरे चिन्ता रहै हइ । ई जे पुरनका पंचसौआ नोट आउर देने रहै खरच करै लै से तँ कोई लेब्बे नै करै छै, फेन विसेसरकें कहलियै ऊ बेचारा भरो दिन लाइनमे लगलै तब जाक’ दू हजार बदलेलै । छोटकी कहलकै जे बलू हिनका अभी नगदीकें टान होतनि, से ज’रे भनसा क’ लेबै । पाँच गोरेकें खेनाइ बनिते हइ आर तीन गोरेकें सिदहा लागि जेतै तँ कोन फरक पड़तै । जएह कनिके तेले-मसल्ला कम खरच हेतै, कने गैसे कम जरतै । कहिओ जे विसेसरकें तीमन-तरकारी लै पैसा दै हियै तँ मनाक’ दै हइ जे बलू राखौ, अखनी पैसाकें काम होतै, बच्चा आउर छोट हइ, दिल्ली जाइ बेरामे बाटमे खरच होतै । सर ! हम कहि ने सकै छी, सुनिते मातर हमर रोइंयाँ कोना खड़ा भ’ गेल रहै । हम कने कला खातिर गुम्म पड़ि गेल रहियै ई सोचि जे लोक हमरा भाइकें अलबौका कहै छै, हमरा भाबोकें लोक हड़काहि कहै छै । हम अपना घरवालीकें फोन पर नीक नाहित बुझौलियै जे, अखनी जकरा आउरकें ढेरी रुपैया हइ सेहो आउर हिलिमिलिक’ काम चलबै छै आ हमरा आउर तँ सभदिने फक्कर ही । ओनाहितो हम कत्ता बेर तोरा बुझौने छियह जे कखैनतो आनि-इरखा नै राखौ मोनमे । ओनहियो ई जेठ हइ, एकर सेहो कोनो फर्ज हइ । देखौ जे ऐ बेर-बेगरतामे अखनी अपने भाइ-भाबो काम एलै । ई गप्प एहिठान अपना बहिनीकें जब सुनौलियै, ओ तहिये सँ कहलकै जे अखनी तोंहू अहिना कर । हमरो पाँच गोरेकें पलिवार चलिते हए, तों असगरे छें अहीठिना खा लिहें । हम रोज रातिक’ घुरती कलामे तरकारी कीनिक’ नेने जाइ छियै । ओहो आर खुश, हमहूँ खुश ।”
दुन्नू मित्रकें ऑफिस पहुँचबामे बिलम्ब जरूर भ’ रहल छलैक मुदा परमेसरसँ गप्प करैत बेस मोन लागि गेल छलैक, आर किछु सुनबाक इच्छा छलैक मुदा बस गंतव्य धरि जेबा लेल तैयार छल, मोहर आ अभिषेक अपन सीट पर आबि बैसि गेल । दुन्नू मित्र एकटा रिक्शाचालकक सकारात्मक सोच, आत्मसम्मान, आत्मज्ञान ओ निःश्छल भावनाकें एतेक लगीचसँ जानि क्षुब्ध छल ।