मिथिलाक
सपूत लोकनि आब फाँढ़ बान्हिक’ मैथिली फिल्म
निर्माणक क्षेत्रमे कूदि पड़लाह अछि, बेगरता छैक त’
मात्र जनजागरूकता आ एकजुटता केर । नीक लगैत अछि जखन सोशल
मिडिया वा मित्र वर्गादि के माध्यमे ज्ञात होइत अछि जे फल्लाँ फिल्मक मुहुर्त
फल्लाँ तिथिमे भेल वा भ’
रहल अछि, फल्लाँ फिल्मक
निर्माण प्रारम्भिक वा अंतिम चरणमे अछि सुनिते जेना मोन आह्लादित भ’ जाइत अछि ।
हमरा
बुझने फिल्मक गुणवत्ता पर तुलनात्मक चर्चाक प्रयोजन वर्तमानमे नञि हेबाक चाही आ
नें कोनो प्रकारक अंतर्कलह के गुंजाइश हेबाक चाही कारण एखन जेनाकि फिल्म निर्माण
जोर पकड़ने अछि ओहि आधार पर बेसी-स’-बेसी संख्यामे फिल्म निर्माण आ प्रोत्साहन केर बेगरता छैक आ जखन संख्या बेस
रहतै त’
स्वाभाविक छैक जे आलोचना सेहो हेतैक, तुलना सेहो हेतैक, समीक्षा सेहो हेतैक आ एहि सभक पाँछा एकटा सार्थक उद्देश्य रहतैक जे फिल्मक
प्रस्तुतिकरणकें स्तरमे दिनानुदिन सुधारात्मक प्रयास होए । हमरा लोकनिक वास्ते जे
वर्तमानमे सबस’
बेसी चिंताजनक विषय
अछि ओ अछि सिनेमा हॉल केर अनुपलब्धता कारण बहुतो निर्मित फिल्मकें सिनेमा हॉल धरि
पहुँचबामे बहुत रास दिक्कत छैक मुदा ज’ निर्मित छैक त’
आइ नें काल्हि पहुँचबे करतै जाहि पर फिल्मक निर्माण समूह केर
प्रत्येक सदस्य,निर्माता-निर्देशकक संग-संग मिथिला-मैथिलीक भाखाप्रेमी आ
आन्दोलनकारीकें एकमत भ’
विचार करब आवश्यक अछि ।
सिनेमा
हॉल मालिकक दूनेती पर सेहो एक प्रश्नचिन्ह लगैछ जे कोन एहेन कारण अछि जे मैथिली
फिल्मकें मिथिला क्षेत्रमे स्वीकृति नञि देल जाइत अछि आ भोजपुरी एवं हिन्दी
फिल्मकें प्राथमिकता देल जाइत अछि । ज’ हमरा लोकनिकें भोजपुरी आ हिन्दी पर आपत्ति नञि अछि आ मैथिली फिल्मक दर्शक
ललायित छथि अप्पन भाखामे निर्मित फिल्म देखबा लेल त’ हुनका एहि स’
वंचित रखबाक अधिकार सिनेमा हॉल मालिक के नञि छनि । ज’ दर्शक अपन मातृभाषामे बनल फिल्म स’ वंचित रहता त’ ओ दिन दूर नञि जे फेर भोजपुरी आ हिन्दीकें सेहो तिरस्कार कएल जाएत जकर छोटछिन
उदाहरण ग्रामीण स्तर पर बन्न हॉलक स्थिति स’ अंदाज लगाओल जा सकैत अछि । ग्रामीण दर्शकक सोझा ज’ विकल्पकें रूपमे मैथिली फिल्मक निरंतरता रहितैक त’ हॉल मालिककें एहेन दुर्दिन नञि देख’ परितनि । रहल बात शहरी क्षेत्रक हॉलकें त’ ई बात निर्विवाद अछि जे जेना आजुक तिथिमे मिथिला-मैथिलीक
प्रति युवा अपन भाखा वास्ते समर्पित छथि हुनका लोकनिकें बाध्य भ’ आन्दोलन कर’ परतनि ।
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