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Wednesday, June 20, 2018

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानसक सुन्दरकाण्डकें अर्चना भगवान जी मिश्र द्वारा मैथिली भाषा मे रूपांतरण

मैथिली साहित्यक विभिन्न विधा मे मौलिक लेखनक संग-संग समय-समय पर नव-नव प्रयोग सेहो होइत आबि रहल अछि. एहि बेर एहने सन किछु प्रयोग केलनि अछि मैथिली गीत आ फिल्म लेखनमे हस्तक्षेप रखनिहार, पेशा सँ इंजीनियर, मधुबनी जिलान्तर्गत ननौर ग्रामवासी श्री भगवान जी मिश्र एवं पेशा सँ गणित शिक्षिका आ हुनक सहधर्मिणी श्रीमती अर्चना प्रियदर्शिनी जिनक संयुक्त प्रयास सँ गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानसक सुन्दरकाण्डकें मैथिली भाषा मे रूपांतरण एवं पोथी रूपमे प्रकाशित ‘सरल मैथिली सुन्दरकाण्ड’ केर विमोचन दीपक फाउंडेशनक वार्षिकोत्सव समारोह-२०१८ केर अवसर पर भारत सरकारक पूर्व शिक्षामंत्री एवं प्रखर राजनीतिज्ञ श्री मुरली मनोहर जोशी जीक करकमल सँ दिल्लीक मावलंकर सभागार मे भेल छल.

सभागार मे उपस्थित दर्शक लोकनिक मध्य भेंटस्वरूप ‘सरल मैथिली सुन्दरकाण्ड’ आ संग मे एकर ऑडियो सीडी जेकि सुपरिचित गायक श्री दिलीप दरभंगिया केर स्वर ओ संगीत मे निर्मित अछि निःशुल्क वितरित कएल गेल. उक्त पोथी आ सीडीक एक प्रति हमरहु प्राप्त भेल. पोथिक आवरण पृष्ठ आ भीतरी पन्नाक उत्तम गुणवत्ता बेस आकर्षित करैत अछि आ दीर्घसमय धरि ई पोथी यथास्वरूप सुरक्षित राखल जा सकैछ. दीपक फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित पहिल संस्करणक एहि पोथिक संपादन केने छथि श्री दीपक झा आ संपादन सहयोग श्री कमल मोहन ठाकुर.

साधारणतया हमरा लोकनि सेहो जखन सुन्दरकाण्ड पाठ करैत छी त’ भाव बुझितो कएक ठाम शब्दक अर्थ बुझबा लेल जिज्ञासु होइत छी. रूपांतरणकर्ताक दू शब्द मे लेखकद्वय द्वारा पाठकक सोझा एहि पोथिक संदर्भमे योजना, क्रियान्वन आ प्रकाशनक उद्देश्य सम्बन्धमे जे अनुभव आ उद्गारकें राखल गेल अछि से सहजहि अकानल जा सकैछ. लेखकीय मंतव्यक आधार पर हिनक मानब छनि मैथिलीमे सरल शब्दक उपयोग करैत लिखबाक मूल उद्देश्य जे आध्यात्मिकताक पालन करैत मानवताक उत्थान हेतु मिथिलाक जन-जन धरि अपन मातृभाषामे एकर प्रचार-प्रसार होय.

लेखकीय प्रयास आ गुणवत्ताक बाद आबी पोथिक पाठकीय पक्ष पर. मैथिली भाषाक प्रति नव पीढ़ीमे आबि रहल उदासीनता जतय चिंताजनक स्थिति उत्पन्न करैत अछि ओत्तहि वर्तमान पीढ़ीक साहित्य सृजनमे सक्रियता आ मातृभाषा प्रति अनुराग सुरक्षित भविष्य हेतु सेहो ततबे सकारात्मक परिवेश बनबैत आश्वस्त करैत अछि. अपना जनैत प्रत्येक सृजनधर्मी लोकनि किछु ने किछु नव सन करबाक प्रयत्न मे छथि जाहि सँ भाषा विस्तारमे अपेक्षित सहयोग भेटैत रहौक. जन-जनकें कंठ मे बसल सुन्दरकाण्डकें मैथिली रूपांतरण करबाक पाँछा हिनको लोकनिक इएह उद्देश्य निहित छनि. वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे देखल जाय त’ उक्त पोथी भाषा संरक्षण आ संवर्धन मे एक योगदानक रूपमे अपन उपस्थिति दर्ज करबैत अछि जे कि सरल,सहज आ सर्वबोधगम्यताक संग पाठकक सोझा प्रस्तुत अछि.

८४ पृष्ठक पोथिक अवलोकन केला उत्तर एहिमे अधिकांश ठाम शब्दानुवाद भेटैत अछि मुदा किछु अंशक भावानुवाद सेहो देखना जाइछ. वर्तनी शुद्धताक मामिलामे बहुत बेसी गंभीरता देखना जाइछ तथापि एक बेर पुनर्संशोधित हएब एहि पोथिक अंतिम प्रकाशन पूर्व आवश्यक छल. टंकण आ मुद्रण केर मामिला मे बेस संतोषजनक काज भेल अछि.

रूपांतरण मे अनेको ठाम क्लिष्ठ शब्दकें सहज बनाएब अचंभित करैत अछि. ई लोकनि किछु शब्दक शोध तत्परतापूर्वक कतेको स्रोत सँ केने छथि तकर दृष्टांत निम्न पाँति सँ देखल जा सकैछ :

मूल : ‘ढ़ोल गँवार शुद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी’

अनुवाद : ‘ढ़ोल गँवार शुद्र पशु नारी, प्रेम सँ बुझबै के अधिकारी’

‘ताड़ना’ शब्दक अर्थ आम प्रचलन मे ‘पिटबा’ सँ लगाओल जाइत अछि आ से प्रसंगवश मोन पड़ैत अछि मैथिली साहित्य महासभा,दिल्ली द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘मिथिलाक नारी, नहि छथि बेचारी’ केर मंच सँ श्रीमती करुणा झा तुलसीदासक प्रति क्षोभ व्यक्त करैत कहने रहथि जे इएह पाँति ज’ कोनो स्त्री द्वारा लिखल जाइत त’ से होइत ‘ढ़ोल गँवार पुरुष और घोड़ा, जितना पीटो उतना थोड़ा’. हिनक आक्षेप आम प्रचलनक आधार पर छलनि नहि कि मनगढ़ंत वा कोनो पूर्वाग्रह भावक आधार पर.

एहि पोथिक लेखक लोकनि एहि ठाम ताड़ना शब्दक अर्थ ‘बुझाएब’ सँ स्पष्ट करै छथि, एकर मतलब विभिन्न शब्दकोश वा आन-आन संदर्भ सँ मदति लैत एकर प्रयोग केने छथि. कहबाक अभिप्राय जे तुलसीदासक विराट सोचक संदर्भमे गहन अध्ययनक पश्चात एहि ठाम उपरोक्त शब्दक विकल्प रूपमे प्रयोग करबाक पाँछा हिनका लोकनिक शोध सोझा अबैत अछि. अपना जनैत रूपांतरणमे ठाम-ठाम बेस साकांक्ष हेबाक प्रयत्न केने छथि. शब्द चयनक क्रममे कतहु सटीक मुदा कतहु रूपांतरण मे हूसल सेहो छथि. तुकबन्दी हेतु मात्रामे छूट लैत किछु पाँतिकें सहज रूपे प्रस्तुत करब सेहो नीक लगैछ.

तुकबन्दी मे मात्राक ध्यान सावधानीपूर्वक लेलनि अछि मुदा कएक ठाम शब्द लेबामे मैथिली शब्दक विकल्प रहितो मूल शब्दक प्रयोग एकरत्ती अखरैत सन लगैछ, यथा कच्छप केर स्थान पर काछु लेल जा सकैत छल आ एहेन-एहेन कतेको शब्द जे पाठ करबा काल बेर-बेर सोझा अबैत अछि. लेखकक मंतव्य छनि सरल शब्द प्रयोगक प्राथमिकता, तें एहि गप्प दिस ध्यानाकर्षण कराएब उचित सन बुझना गेल. जेनाकि एकर ऑडियो सेहो निकलल अछि त’ संभव अछि जे गेयधर्मिताक पालन हेतु मीटर मे नै आएब बाध्यता सेहो एक तर्क भ’ सकैत अछि. आर बहुत रास नीक-बेजाए तथ्य जे पाठ करबाक क्रममे सोझा आएल जकर किछु जिम्मा अपने लोकनिक सेहो जे ई विलक्षण पोथी मंगाबी,पाठ करी आ लेखकद्वयकें यथोचित प्रतिक्रिया सँ अवगत करबियनि जे अगिला संस्करण धरि आर बेसी निखरिक’ सोझा आबय.

सरल मैथिली रूपांतरित सुन्दरकाण्डक सद्प्रयास देखि कहल जा सकैछ जे स्थायी रूप सँ शहरी परिवेश मे रहितो एहि दम्पतिकें अपन भाषा आ संस्कारक प्रति जे चेतना आ कृतज्ञताक बोध छनि से हिनका लोकनिकें विशेष बनबैत छनि. ई कहबा मे कनेको असोकर्ज नहि जे हिनका लोकनिक ई प्रयास सराहनीय अछि.

पोथिक मोल यथासाध्य नियमित पाठ आ पोथी प्राप्ति हेतु दीपक फाउंडेशन वा लेखक सँ सम्पर्क कएल जा सकैछ.

संकटमोचन हनुमान जीक कृपा दृष्टि सँ हिनका लोकनिक यशोगानक चर्च होइत रहनि ताहि आशा अपेक्षाक संग एक सिनेही पाठक दिससँ हार्दिक मंगलकामना !

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