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Monday, January 16, 2017

घाट पर जातिमे उपरौंझ,मकड़ी,फाँक आ पुरनिवाली मंचित


१४ जनवरी २०१७ ककला-संगीतमे प्रशिक्षण आ प्रदर्शनक सभसपैघ गढ़ संगीत नाटक अकादमी (एन.एस.डी.) दिल्ली केर सम्मुख सभागार मे मैलोरंग रेपर्टरी प्रस्तुत नाटक घाट  पर जातिकेर सफल मंचन भेल. साहित्य अकादमी सपुरस्कृत मैथिलीक प्रसिद्ध लेखक प्रदीप बिहारी केर चारि गोट कथा क्रमशः उपरौंझ,मकड़ी,फाँक आ पुरनिवाली जेकि स्त्री विमर्श पर आधारित छल, केर कथामंचन कएल गेल. ५५ मिनट केर अवधि तक मंचित होइबला ई नाटक एक्कहि दिनमे दू खेप मंचित भेल. नाटकक मंचन हेतु चारू कथाक संग्रह मे मैलोरंग समूहक एक प्रयोग जेकि स्त्रीक विभिन्न परिस्थितिकें उजागर करैत अछि ओ नाटकक विषय-वस्तुकें समकालीन रूपरेखामे प्रस्तुत करबाक एक साहसिक प्रयास सेहो केने अछि. एहि चारू नाटकमे स्त्रीक विभिन्न रूपक चरित्र-चित्रण भेल अछि.

उपरौंझ मे माए-बेटी केर पर-पुरुषक प्रति समान आकर्षण जतएक-दोसराकें प्रति घृणा बोध करबैछ ओत्तहि माए अपन बेटीक भविष्य मे साँप-बिच्छू सन असामाजिक तत्वक हाथ सदूर रखबाक हरसंभव प्रयास माइअक अपन बिताओल भोगविलासी समयक पश्चातापक सेहो बोध करबैछ.

मकड़ी कथामे नायिकाक स्वामिक मृत्योपरांत सिलाइ-कढ़ाइ कअपन जीवनयापन करब आ सामान्य जीवन जीबाक क्रममे ओकर रूप-सौन्दर्य आ जुआनी पर मोहित युवक द्वारा ओकरा संग दाम्पत्य जीवनक पुनर्प्रारंभ एक उमेद जगबैछ मुदा नवस्वामिक अत्यधिक पिआक लक्षण ओकरो जीवनक अंत कदैछ संगहि नवजात शिशुक मृत्यु पुनः ओकरा जीवनकें ओएह पुरान दिन दिस धकेलि देइत अछि जतनवकिरणक आस जागल रहैक. एक बौक आ अनाथ बच्चाकें लालन-पालनमे वात्सल्य्ताक अगाध सीमा अनचोकेमे कामुकतामे परिवर्तित होइत नायिकाकें स्वयं अपराधबोध करबैछ आ स्वयं नजरि उठा तकबाक ग्लानि बौका सदूर करैत चल जाइछ आ एहि बात सबौकाक गृहत्यागब नायिकाकें मथसुन्न बना जीवन भरि कचोटबाक विकल्प मात्र छोड़ि जाइछ.

फाँक कथा प्रेम आ दायित्वक मध्य एकटा एहेन फाँक पर आधरित अछि जकरा केन्द्रमे सारि आ बहिनोइक अवैध सम्बन्ध अछि. अविवाहित सारिक गर्भधारण एक एहेन भयानक विषय बनि जाइछ जे सामाजिक प्रतिष्ठा आ गर्भपलित शिशु केर मध्य असमंजस सन स्थिति ठाढ़ कदैत अछि. प्रेमी-प्रेयसीक मध्य अनेकानेक चिंतन-मंथन केर उपरान्त गर्भपात (भ्रूणहत्या) कराओल जाइत अछि आ एहि ठाम एक अजन्मा शिशु पर सामाजिक प्रतिष्ठा केर विजय स्थापित होइत अछि.

पुरनिवाली कथा पुरुष समाज पर एक पैघ प्रश्न ठाढ़ करैत अछि. कथाक माध्यम सई स्पष्ट होइत अछि जे समाज बाँझ स्त्रीकें उजागर करबामे कोनो संकोच नैं करैछ आ ई शब्द समाजक शब्दकोषमे बेझिझक प्रयोग कएल जाइत रहल अछि मुदा पुरुषक नपुंसकता सामजिक स्तर पर लाजक विषय अछि आ बाँझपन सबेसी नपुंसकताकें दबेबाक प्रयास कएल जाइत अछि. एक दाम्पत्य जीवन जेकि सुखमय अछि मुदा एक बच्चा बिना सुन्न सन. दुनू दम्पतिकें इलाजक क्रममे आर्थिक ओ मानसिक रूप सहताश कदेने अछि. चिकित्सक द्वारा पुरुषक कमी स्पष्ट भेलाक बाद स्त्रीक मोन आर विचलित भजाइछ आ स्त्रीकें बच्चाक ललसा एक अकल्पनीय बाट दिस लजेबा लेल आकर्षित कलैत छैक.

चारू नाटककें जएक-दोसरा सजोड़ि कदेखल जाए तनारीक चरित्रमे घृणा,सहानुभूति,विवशता,वात्सल्यता आदिक सामंजस्य भेटैत अछि. एहि नाटकमे नेपाल आ भारतक मध्य बेटी-रोटी सनक प्राकृतिक सम्बन्धकें सामंजस बना सहजता सप्रस्तुत कएल गेल अछि. लेखकक कलम एहि बातकें सेहो अंकित करैत अछि जे आमजनक वास्ते भारत-नेपाल कोनो दृष्टिकोण सफराक देश हेबाक प्रश्नें नैं ठाढ़ करैछ. मंच पर अपन निस्सन ओ दमदार उपस्थित दजे रंगकर्मी एकरा सफल बनौलनि ओ लोकनि छथि-ज्योति झा, अमरजीत राय, मुकेश झा, पूजा प्रियदर्शनी,ऋतुराज, रमण कुमार आ नितीश कुमार. निर्देशन- प्रो. देवेन्द्र राज अंकुर, सह-निर्देशन- डॉ. प्रकाश झा. पार्श्व मंच पर संगीत-दीपक ठाकुर, प्रकाश-श्याम सहनी आदि.

उक्त कार्यक्रममे धीरेन्द्र प्रेमर्षि, प्रदीप बिहारी, सविता झा खान आ देवेन्द्र राज अंकुरक आतिथ्य आ मैलोरंग प्रस्तुत ई नाटक एन.एस.डी केर सम्मुख सभागारमे चारि चान लगबैत मैथिलीक झंडा एक बेर फेर से फहरेबामे सफल रहल.

Sunday, January 08, 2017

वर्तमान मैथिली गीत-संगीत हमरा नजरिसँ


साहित्यमे अन्यान्य विधा जेंका गीत-संगीतक सेहो अपन वैशिष्ट्यता अछि. विदेह संपादन समूह द्वारा मैथिली गीत-संगीत केन्द्रित विषय पर आलेख हेतु विशेषांक निर्धारित करब एहि विधाक प्रति गंभीरताक द्योतक अछि. उक्त विषय पर विस्तृत आलेख शोधक विषय-वस्तु थिक, तैं एहि सभस फराक अपन व्यक्तिगत अनुभव सकिछु लिखबाक चेष्टा मात्र करहल छी.

वर्तमान समयमे पारम्परिक गीतक अपेक्षा आधुनिक लोकगीत बेस प्रचलनमे अछि. कारण स्पष्ट अछि व्यावसायिक दृष्टिकोण. नव तूरक लोककें लटक झटक बेस रुचै छन्हि आ तदनुरूप गवैया ओ गीतकार सेहो ओहिमे रमबाक प्रयासमे वा कही जे फरमाइशकें यथासंभव पूर करबाक चेष्टा करैत छथि. पारम्परिक गीतक श्रोता वा कही जे खाँटी संस्कृति प्रेमी छथि तमुदा सीमित संख्यामे. आधुनिकतामे रमल नव पीढ़ीक नहि तगवैया लोकगीत कें गंभीरता सलैत छथि आ नें श्रोता. मैथिली गीत-संगीतक क्षेत्र वर्तमानमे कत्तेको कलाकारकें जीविकोपार्जन केर साधन बनल अछि. संगीत चाहे पारंपरिक होउ वा शास्त्रीय होउ वा आधुनिक होउ मैथिलीक सेवा कअर्थोपार्जन कजीवनयापन करब जतबे आह्लादक विषय अछि ततबे साहसिक डेग सेहो. साहसिक डेग सअभिप्राय ई जे वर्तमान जुगक अवधारणा अछि जे अहाँकें जाहि कोनो प्रतिभामे आत्मविश्वास अछि ओकरा आगाँ लव्यावसायिक बनाउ आ अपन अभिरुचिक अनुसारे ओहिमे समर्पण भाव सयोगदान देल जाउ, मुदा मैथिली गीत-संगीतक प्रति एकर विपरीत अवधारणा अछि जकर मुख्य कारण अछि अर्थोपार्जनमे अनिश्चितता. पूर्वक पीढ़ीमे अपवादस्वरूप किछुए लोक मुदा वर्तमान समयक बेसी-स-बेसी युवा एहि मिथककें तोड़बाक प्रयास केलनि अछि आ अपन जीविकोपार्जन केर साधन बनौलनि अछि.

आलेख हेतु देल गेल विषयमे किछु महत्त्वपूर्ण बिन्दु सभ पर अनुभव साझा करबाक प्रयास मात्र करहल छी. गीत-संगीतक भाव पक्ष केर संदर्भमे एतबा जरूर देखल जाइछ जे, गीतकार जे कोनो गीत लिखैत छथि ओ सर्वबोधगम्य हेबाक चाही, जिनक शब्द लेखन आम जनक बोलचाल वा दैनिकीय भाषा मे नियमित प्रयोग मे अबैत होइक आ जकरा संगीतकार लोकनि कर्णप्रिय बना सुन्दर गवैयाक माध्यम सजन-जन धरि पहुँचेबाक प्रयास करथि. गीतमे क्लिष्ठता ओ साहित्यिक शब्दक चयन एक वर्ग विशेष धरि सीमित रहैत अछि जे अमूमन एक सामान्य श्रोता द्वारा स्वीकार्य नहि होइत अछि. मूलतः देखल जाए तसंगीतक प्रारंभिक रूप गीतक शब्द होइछ तैं गीतकारकें शब्द चयन हेतु विभिन्न अभिरुचिक श्रोताकें ध्यान मे राखि मर्यादित गीत लिखक चाहियनि.

वर्तमान मे मैथिली गीत संगीत मे देखौंसक प्रक्रिया बेस हाबी भरहल स्थिति मे विकृतता आएब स्वाभाविक अछि. संगीत जहिना मनोरंजन हेतु आवश्यक विधा अछि तहिना भाषा-संस्कृति केर रूपमे वाहकक श्रेणीमे सेहो अबैछ तैं गीतकार-संगीतकार आ गायक लोकनिकें एहि बातक समुचित धेआन रखबाक चाही. तकनीकी पक्षक जततक प्रश्न अछि गीतक शब्दक अनुरूपे संगीत वा संगीतक अनुरूपे गीतक शब्दक तालमेल परम आवश्यक होइछ, कोन गायकक कंठ मे कोन गीत बेसी रोचक लगैछ एहि सभ विषय पर सेहो ध्यान देल जाए तगीत आर बेसी अपन सुन्नर रूपमे निखरि कसोझा आबि सकैत अछि. प्रस्तुतिक दू गोट रूप वा तमंच वा स्टूडियो रेकॉर्डिंग जाहिमे वाद्य-वादन सेहो गीतकें तकनीकी रूप समजगूती प्रदान करैत अछि.

आइ-काल्हि स्टूडियो रेकॉर्डिंग के नवका चलन आएल अछि डी-टोन केर. डी-टोन कोनो आवाजक टोन कें अपना स्तर सबदलि देइत अछि जकर प्रभाव मे गायकक मौलिक स्वर केर अंदाज करब सेहो मोसकिल अछि. सुर सभटकैत गवइया लोकनि एखन एकर प्रयोग बेसी सबेसी करैत देखल जाइ छथि आ ई प्रथा हरियाणवी आ भोजपुरी संगीत सबेस प्रभावित अछि. यत्र-तत्र कम सकम लागत मे दिनानुदिन पसरि रहल स्टूडियो,कैसेट कंपनी आदि समैथिली संगीतक कमजोर गुणवत्ता तदेखबामे अबैत अछि मुदा नव-नव कम्पनी के खुजला सनव प्रतिभावान कलाकार लोकनिक वास्ते एकटा नीक माध्यम बनि सोझा अबैत अछि. मार्केटिंग पक्षक दृष्टिकोण जदेखल जाए तमैथिली गीत-संगीतकें व्यावसायिक रूप प्रदान करबा लेल मार्केट एखनो धरि व्यापक स्तर पर सक्रिय नहि भेल अछि.

आन-आन भाषा के तुलना मे मैथिली गीत-संगीतक बाजार एखनो बड्ड छोट आ सीमित अछि. कीनिकसुनबला मनोवृति एखनो धरि नहि जागल अछि. एकर दुन्नू कारण भसकैइयै, पहिल जे लोककें मनमोताबिक संगीतक उपलब्धता नहि होइ छनि वा दोसर जे विधा सजूड़ल लोक द्वारा फ़ोकट मे बंटबा बला प्रवृति जकर स्थिति कमोवेश साहित्ये बला अछि. हालांकि डिजिटल व्यवस्था भेला सउपलब्धता सहूलियत सरहल अछि आ कलाकार लोकनिकें मंच, एलबम,सिनेमा आदिमे लिखबाक,गेबाक ओ धुन बनेबाक अवसर भेटैत छनि जेकि कएक टा मायनेमे महत्त्व रखैत अछि. एहि डिजिटल जुगमे दर्शक/श्रोताक पसीनकें धेआनमे रखैत प्रायः अधिकाधिक कम्पनी वीडियो बना बजार मे वितरण करै छथि वा सोशल नेटवर्कक विभिन्न श्रोत सजन-जन धरि पहुँचेबाक प्रयास करै छथि. अधिकाधिक संख्या मे देखल जाए तविडियो शूटिंगमे गीतक केन्द्रित विषय सआंशिको रूप सतालमेल नैं खाइत अछि, मने गीतक विषय किछु आर मुदा अभिनय द्वारा किछु आर दर्शाओल जाइत अछि.एहि पक्ष पर गंभीरता लाएब सेहो ओतबे आवश्यक अछि.   

मैथिली गीत-संगीत मे नैं गीतकारक अभाव छै आ नैं गौनिहार कें अभाव छैक मुदा सभसबेसी अभाव संगीतकारक देखबामे अबैछ. बनल-बनाएल धुन (ओ चाहे हिन्दी फिल्म संगीतक तर्ज पर होए वा आन-आन क्षेत्रीय भाषा केर तर्ज पर होए) आखर फिट कगीतकार द्वारा लिखब आ तदनुरूप गायक द्वारा ओकरा गाएल जेबाक प्रथा बेस जोर पकड़ने अछि. ओना संगीत विधा सजूड़ल प्रत्येक व्यक्ति के चाहियनि जे अपन-अपन अभिरुचिक क्षेत्रमे प्रशिक्षित होथु मुदा ताहूमे सभसबेसी खगता धुन बनेनिहारक अछि जेकि वर्तमान समयमे गीतकार ओ गायकक संख्याक तुलनामे बड्ड कम वा कहल जाए जे मात्र गिनल-चुनल लोक छथि. ओना एहि विधामे सभ दिने सगीतकार-संगीतकारक तुलनामे गायकक प्रसिद्धि बेसी रहल अछि, कारण गायक लोकनि अपन एक विशेष प्रकारक स्वरक बले समाजमे चिन्हल जाइ छथि संगहि मंचक सोझा सश्रोता/दर्शक सप्रत्यक्ष संवाद हेतु समय-समय पर उपलब्ध होइत रहैत छथि, एहेन सन स्थितिमे गायक लोकनिक एक इमानदार प्रयास अपेक्षित रहैत अछि जे ओ मंच पर वा कोनो साक्षात्कार मे गीत प्रस्तुति सपूर्व संगीतकार ओ गीतकारक नाओं केर उल्लेख करथि, कारण हुनकर प्रसिद्धिक पाँछा हिनका लोकनिक जोगदानकें नकारल नैं जा सकैत अछि. मैथिली गीत-संगीतमे कतबो विकृति आबि गेल छैक मुदा आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखबा लेल संख्या मे बढ़ोत्तरी अपेक्षित अछि. आलोचना वा तुलना ओतप्रभावी होइत अछि जतसंख्या केर उपलब्धता अधिकाधिक होइछ. मैथिली गीत-संगीतकें अपन कर्मक्षेत्र बना गुजर-बसर केनिहार एक-एक कलाकारकें साधुवाद जे चाहे जाहि कोनो तरहें मुदा अपन मातृभाषाकें सेवैत अर्थोपार्जन करहल छथि, बहुत हिम्मत के काज छैक. निवेदन जे भाषा संरक्षणक संग-संग संस्कृति संरक्षण पर सेहो ध्यान केन्द्रित करैत एहि क्षेत्रमे आगाँ बढैत छथि तसे आर बेसी आह्लादक गप्प हएत.

प्रकाशित : विदेहक २१७म अंक ०१ जनवरी २०१७